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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*हिंडौन प्रसंग ~*
१९६. अन्य उपासक विस्मयवादी भ्रम । रंग ताल
साचा राम न जाणै रे, सब झूठ बखाणै रे ॥टेक॥
झूठे देवा झूठी सेवा, झूठा करे पसारा ।
झूठी पूजा झूठी पाती, झूठा पूजणहारा ॥१॥
झूठा पाक करै रे प्राणी, झूठा भोग लगावै ।
झूठा आड़ा पड़दा देवै, झूठा थाल बजावै ॥२॥
झूठे वक्ता झूठे श्रोता, झूठी कथा सुणावै ।
झूठा कलियुग सब को मानै, झूठा भ्रम दिढ़ावै ॥३॥
स्थावर जंगम जल थल महियल, घट घट तेज समाना ।
दादू आतम राम हमारा, आदि पुरुष पहिचाना ॥४॥
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हिंडौन में वैरागी चरणदास रहते थे । दादूजी हिन्डौन पधारे तब चरणदास दादूजी के पास आये और बोले - स्वामिन् ! बहुत समय से ठाकुर सेवा करता हूँ किन्तु मुझे अभी तक न संतोष और न शांति मिली है । अब आप मुझे परम शांति प्रदाता उपदेस अवश्य कीजिये । तब दादूजी ने उक्त १९६ के पद से उनको उपदेश किया था । फिर वे दादूजी के शिष्य होकर रणथम्भौर में रहकर भजन करते रहे थे । ये दादूजी के ५२ शिष्यों में हैं ।
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३७०. परिचय सुख वर्णन । षड्ताल
मोहन माली सहज समाना, कोई जाणैं साध सुजाना ॥टेक॥
काया बाड़ी मांही माली, तहाँ रास बनाया ।
सेवग सौं स्वामी खेलन को, आप दया कर आया ॥१॥
बाहर भीतर सर्व निरंतर, सब में रह्या समाई ।
परगट गुप्त, गुप्त पुनि परगट, अविगत लख्या न जाई ॥२॥
ता माली की अकथ कहानी, कहत कही नहिं आवै ।
अगम अगोचर करत अनन्दा, दादू ये जस गावै ॥३॥
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हिन्डौन नगर में मोहन दरियाई नामक सज्जन ने दादूजी को प्रणाम करके कहा - भगवन् ! मुझे भी उपदेश करके मेरा उद्धार अवश्य करिये । तब दादूजी ने उक्त ३७० के पद से उनको उपदेश देकर कृतार्थ किया था । फिर दादूजी के शिष्य होकर बूंदी राज्य के समाधि ग्राम में रहकर भजन करते थे ।
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