सोमवार, 29 सितंबर 2014

*अलोदा प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*अलोदा प्रसंग*
२६६. काल चेतावनी । पंजाबी त्रिताल
माया संसार की सब झूठी ।
मात पिता सब ऊभे भाई, तिनहिं देखतां लूटी ॥टेक॥
जब लग जीव काया में थारे, खिण बैठी खिण ऊठी ।
हंस जु था सो खेल गया रे, तब तैं संगति छूटी ॥१॥
ए दिन पूगे आयु घटानी, तब निचिन्त होइ सूती ।
दादू दास कहै ऐसी काया, जैसी गगरिया फूटी ॥२॥
अलोदा ग्राम के सौंक्या गोत्र के खंडेलवाल लाखा और नरहरि दोनों को दादूजी ने उक्त २६६ पद से उपदेश किया था । उक्त पद सुनकर लाखा ने कहा - माया झूठी है तब तो इसका सर्वथा त्याग करने के लिये आप हमको साधु बना लीजिये । दादूजी ने कहा - जब तक अपना मिथ्या अहंकार दूर नहीं होता तब तक भेष से कु़छ नहीं होता ।
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फिर दादूजी ने २६७ का पद -
२६७. माया मध्य मुक्ति । त्रिताल
ऐसे गृह में क्यों न रहै, मनसा वाचा राम कहै ॥टेक॥
संपति विपति नहीं मैं मेरा, हर्ष शोक दोउ नांही ।
राग द्वेष रहित सुख दुःख तैं, बैठा हरि पद मांही ॥१॥
तन धन माया मोह न बांधे, वैरी मीत न कोई ।
आपा पर सम रहै निरन्तर, निज जन सेवग सोई ॥२॥
सरवर कमल रहै जल जैसे, दधि मथ घृत कर लीन्हा ।
जैसे वन में रहे बटाऊ, काहू हेत न कीन्हा ॥३॥
भाव भक्ति रहै रस माता, प्रेम मगन गुण गावै ।
जीवत मुक्त होइ जन दादू, अमर अभय पद पावै ॥४॥
उक्त पद रूप उपदेश सुनकर वे दोनों दादूजी के शिष्य हो गये और निर्गुण ब्रह्म की भक्ति करने लगे ।
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*दौसा प्रसंग*
*पूरणहारा पूरसी, जी चित रहसी ठाम ।*
*अंतर तै हरि उमगसी, सकल निरंतर राम ॥११॥*
(विश्वास अंग १९)
दौसा के गेटोराव तालाब पर पहुँचने पर दादूजी ने शिष्य संतों को कहा - संतों ! अच्छा सरोवर आ गया है, स्नान कर लो । तब जग्गाजी ने कहा - स्नान कराकर गर्म गर्म जलेबी जिमाओगे क्या ? तब दादूजी ने उक्त साखी कही थी ।

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