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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” १८/२०)*
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भक्ति ज्ञान सिद्धान्त निज, शुद्ध विराग निदान ।
पढे विचारे प्रीति सूं, पावे पद निर्वाण ॥१८॥
इस अनुभव वाणी में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का विशुद्ध प्रतिपादन है, जो श्रद्धालु एवं जिज्ञासु जन सुविचार पूर्वक प्रीति से पढ़ेंगे, वे अवश्य ही निर्वाण पद(मोक्ष) को प्राप्त करेंगे ॥१८॥
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*साखी अनुष्टप् छन्द है*
छन्द अनुष्टुप् जानिये, अंक तीस दो होय ।
साखी अंग सैंतीस ह्वै अंग बन्ध पुनि सोय ॥१९॥
ग्रन्थ की शास्त्रीय गणना पद्धति के अनुसार इस वाणी का प्रमाण १,६०,०००=३२अक्षर=५००० अनुष्टप् छन्दों में परिमेय है । अंग बन्ध(प्रकरण शीर्षक) से युक्त साखी भाग के विस्तार का प्रमाण सैंतीस अंगों में निबद्ध है ॥१९॥
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श्रीमुख ते वाचक सुने, शिष्य हृदय आनँद ।
हाथ जोड़ि विनती करी, नमो देव सुखकन्द ॥२०॥
गुरुदेव के श्री मुख से अनुभव वाणी का आख्यान सुनकर गरीबदास जी के साथ अन्य शिष्यों को भी हार्दिक आनन्द प्राप्त हुआ । सभी ने हाथ जोड़कर विनती करते हुये कहा - हे गुरुदेव ! आपने अनुभव वाणी द्वारा अनुपम सुखकंद हमें सौंप दिया, आपको बारंबार नमस्कार ॥२०॥
(क्रमशः)

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