卐 सत्यराम सा 卐
दादू भीतर पैसि कर, घट के जड़े कपाट ।
सांई की सेवा करै, दादू अविगत घाट ॥
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यदि तुम उस जगत सृष्टा स्वामी की अपने शुघ्दअन्त:करण से सेवा करोगे तो इस अन्त:करण मे उस के दर्शन(दीदार) करने में समर्थ हो सकोगे; क्योकि वह भक्तो का प्रेमी प्रभु अपने भक्तो से कभी दूर नहीं रहता ॥
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