#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सो घर सदा विचार का, तहाँ निरंजन वास ।
तहँ तूँ दादू खोजि ले, ब्रह्म जीव के पास ॥
जहँ तन मन का मूल है, उपजे ओंकार ।
अनहद सेझा शब्द का, आतम करै विचार ॥
भाव भक्ति लै ऊपजै, सो ठाहर निज सार ।
तहँ दादू निधि पाइये, निरंतर निरधार ॥
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कठोपनिषद ~
हे मेरे मन आप हृदय में मुख - प्रीति का विषय जो परमेश्वर है, उसकी खोज (तलाश) करो । जहाँ से अनहद ध्वनि होती है, उसी के समीप अपने आत्म - स्वरूप को देखिए, क्यों कि हृदय में ही एक अद्वितीय, सर्व माया कृत उपाधियों से रहित स्वयं ज्योति रूप ब्रह्म है, वही एक सबको अपने अधीन रखने वाला, सम्पूर्ण भूतों की अन्तरात्मा, अपने एक रूप को ही अनेक प्रकार का कर लेता है । अपनी बुद्धि में स्थित उस आत्म - देव को जो धीर विवेकी पुरुष देखते हैं, उन्हीं को नित्य - सुख प्राप्त होता है, औरों को नहीं।
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