बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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३४. मनुष्य देह महात्म्य । झपताल ~
ऐसा जनम अमोलिक भाई, 
जामें आइ मिलै राम राई ॥टेक॥
जामें प्राण प्रेम रस पीवै, 
सदा सुहाग सेज सुख जीवै ॥१॥
आत्मा आइ राम सौं राती, 
अखिल अमर धन पावै थाती ॥२॥
प्रकट दर्शन परसन पावै, 
परम पुरुष मिलि मांहि समावै ॥३॥
ऐसा जन्म नहीं नर आवै, 
सो क्यों दादू रतन गँवावै ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव मनुष्य शरीर की महिमा बता रहे हैं कि हे भाई ! यह मनुष्य का जन्म ऐसा अमूल्य है कि इसमें जीव आने पर संसार के राजा रामजी इसमें मिलते हैं । 
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यह प्राणधारी परमेश्‍वर की प्रेमाभक्ति रूप अमृत - रस का पान करता है और सदा हृदय - शय्या पर प्रभु का दर्शन करके सुख से जीवन बिताता है, 
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और फिर इस मनुष्य शरीर में जीव आत्मा, सांसारिक भावनाओं से रहित होकर राम से अनुरक्त होता है और सम्पूर्ण संसार के अमर धन, परब्रह्म रूप धरोहर को प्राप्त कर लेता है । 
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इस प्रकार, परमेश्‍वर का प्रत्यक्ष दर्शन करके जीवात्मा उसी में समा जाता है । हे मानव ! ऐसे रत्नरूप नरतन को विषयों में व्यर्थ क्यों गमाता है ?
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So priceless is this birth, O friend,
That by assuming it, the Supreme Lord can be met.
The soul herein drinks the Nectar of love
And enjoys the bliss of eternal union.
The soul comes to be absorbed in God and regains
The heritage of immortal treasure in its entirety.
She touches and sees the Lord directly;
On meeting the Supreme Lord, she merges in Him.
Such a birth cannot be obtained again, O friend.
Why do you waste this jewel? says Dadu.
(English translation from "Dadu~The Compassionate Mystic"
by K. N. Upadhyaya~Radha Soami Satsang Beas)

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