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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” २५/२६)*
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*मत गयन्धर*
पाँच प्रहर रहे वसुधा पर,
शिष्य सुनो जन सेवक सारे ।
भयहरणां गिरि है अति पावन,
तहाँ निज क्षेत्र सुधाम हमारे ।
संत अनन्त तपें गिरि भीतर,
नाम प्रसिद्ध भये जग सारे ।
फेर बधे उपमा गिरी कन्दर,
सोरूं घाट गंगा हरिद्वारे ॥२५॥
देव पार्षदों द्वारा लाये आकाश से विमाण(पालकी) द्वारा स्वरूप में प्रवेश लीन होवेगा । प्रयाण हेतु निवेदन करने पर श्री दादूजी ने शिष्य सेवकों से कहा - अब वसुधा पर हमारा समय पाँच प्रहर ही रुकने का अवशेष रह गया है । तदुपरान्त हमारा स्वरूप भयहरण गिरि के अत्यन्त पावन तपोवन परवत से निज स्वरूप में प्रवेश लीन होवेगा । वह स्थान हमारा पूर्वकालिक तपोधाम है । उस पर्वत में अनन्त संत गुप्त रूप से तपस्या कर रहे हैं । उस धाम की प्रसिद्धि सारे जगत् में होवेगी, समयानुसार शोभा और समृद्धि बढ़ेगी । हरिद्वार तीर्थ और गंगाघाट के समान उस धाम की मान्यता और उपमा फैलेगी ॥२५॥
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स्वामिजु ध्यान धरे रजनी मधि,
साधु सभी गुरु नाम उचारा ।
न्हाय पहैर दियो सब को दर्रा,
भोजन ल्यो शिष्य सेवक सारा ।
आयसु पा परसाद लियो सब,
आप कियो पय पान अहारा ।
बैठि इकंत भजे भगवन्त हि,
तीन अवाज भई करतारा ॥२६॥
तत्पश्चात् स्वामी श्री दादूजी मध्य रात्रि तक ध्यान करते रहे, और सभी संत गुरु नाम का कीर्तन उच्चारण करते रहे । ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके श्री दादूजी ने शुचि शुद्ध स्वरूप धारण किया और शिष्य सेवकों को आदेश दिया कि - सभी जन भोजन - प्रसाद पा लो । गुरु आज्ञा मानकर सभी ने भोजन किया । श्री दादूजी ने तो केवल दुग्ध पान किया । तदुपरान्त श्री दादूजी एकान्त में बैठकर भगवत् स्मरण करने लगे, तभी सृष्टिकर्ता श्री हरि द्वारा उच्चारित तीन आवाजें महाप्रयाण(यानी रवाना) हेतु सुनाई दी । सत्यराम, सत्यराम, सत्यराम ॥२६॥
(क्रमशः)

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