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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” २३/२४)*
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*आकाश से देव पालकी नरेना राम चौक में -*
वासर दोय समीप रहे तब,
आवत पालकि पंथ आकाशा ।
केसर चन्दन छाइ सुगन्धित,
ल्याय धरे सुर मन्दिर पासा ।
देखि विमान अचंभ भये जन,
संत सबै मन होत उदासा ।
आप कही मम हेत पठी हरि,
मैं करिहूं निज लोक निवासा ॥२३॥
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*सोरठा*
*भैराणा परवत की महिमा -*
पठे पारषद पास, महादिव्य गुरु पालकी ।
सुन्दर दरश सुवास, बैठि चलो निज लोक कल ॥२४॥
ब्रह्मधाम से प्रयाण में दो दिवस शेष रहने पर आकाश से एक दिव्य पालकी अवतरित हुई । वह पालकी केशर - चन्दन से अतीव सुवासित थी । देव पार्षदों ने उस पालकी को मन्दिर के समीप लाकर रखा । उस दिव्य पालकी को देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गये, किन्तु कुछ ज्ञानी संत तो समझ गये थे कि - यह पालकी गुरुदेव के निजलोक प्रयाण हेतु आई है, अत: वे भावी गुरु विरह के विषय में सोचकर उदास हो गये ॥२३ - २४॥
(क्रमशः)

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