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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*नला प्रसंग*
१९१. सांच झूठ निर्णय प्रतिपाल
सांई को साच पियारा ।
साचै साच सुहावै देखो, साचा सिरजनहारा ॥टेक॥
ज्यों घण घावां सार घड़ीजे, झूठ सबै झड़ जाई ।
घण के घाऊँ सार रहेगा, झूठ न मांहि समाई ॥१॥
कनक कसौटी अग्नि - मुख दीजे, पंक सबै जल जाई ।
यों तो कसणी सांच सहेगा, झूठ सहै नहिं भाई ॥२॥
ज्यों घृत को ले ताता कीजे, ताइ ताइ तत्त कीन्हा ।
तत्तैं तत्त रहेगा भाई, झूठ सबै जल खीना ॥३॥
यों तो कसणी साच सहेगा, साचा कस कस लेवै ।
दादू दर्शन सांचा पावै, झूठे दरस न देवै ॥४॥
आमेर से चलकर जब आगे बढ़े तब नला पर रहने वाले रामू माली को ज्ञात हुआ कि दादूजी इस मार्ग से आ रहे हैं तब वह खरबूजे लेकर मार्ग में आया और अपने कुटुम्ब को सूचना दी कि तुम लोग शीघ्र आरती करने की सामग्री लेकर सब मार्ग पर आ जाओ । भाग्यवश दादूजी इस मार्ग से आ रहे हैं । वे सब आ गये । दादूजी के आने पर रामू आदि सबने दादूजी की पूजा की दादूजी ने भी उसे गुरु मंत्र देकर उपदेश देने के लिये उक्त १९१ का पद सुनाया था ।

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