गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

*बुढेदेवला ग्राम*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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६८. निज घर परिचय । पंचम ताल
भाई रे घर ही में घर पाया ।
सहज समाइ रह्यो ता मांही, सतगुरु खोज बताया ॥टेक॥
ता घर काज सबै फिर आया, आपै आप लखाया ।
खोल कपाट महल के दीन्हें, स्थिर सुस्थान दिखाया ॥१॥
भय औ भेद भरम सब भागा, साच सोई मन लाया ।
पिंड परे जहाँ जिव जावै, ता में सहज समाया ॥२॥
निश्चल सदा चलै नहिं कबहूँ , देख्या सब में सोई ।
ताही सौं मेरा मन लागा, और न दूजा कोई ॥३॥
आदि अनन्त सोई घर पाया, अब मन अनत न जाई ।
दादू एक रंगै रंग लागा, तामें रह्या समाई ॥४॥
आमेर में एक दिन दयालदास नामक व्यक्ति बुढेदेवला ग्राम से आये और दादूजी से पू़छा- स्वामिन् ! परमात्मा का निवास कहां है ? तब दादूजी ने उक्त ६८ के पद से उनको बताया था । यह सुनकर उनको अति आनन्द हुआ था । फिर वे दादूजी के शिष्य बन गये थे और देवला में स्थायी रूप से रहकर भजन करने लगे थे ।

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