गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

*आँधी प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*आँधी प्रसंग*
३३४.(फारसी) विनती । उदीक्षण ताल
मालिक महरबान करीम ।
गुनहगार हररोज हरदम, पनह राख रहीम ॥टेक॥
अव्वल आखिर बंदा गुनहीं, अमल बद विसियार ।
गरक दुनिया सत्तार साहिब, दरदवंद पुकार ॥१॥
फरामोश नेकी बदी करद, बुराई बद फैल ।
बखशिन्दः तूँ अजीब आखिर, हुःम हाजिर सैल ॥२॥
नाम नेक रहीम राजिक, पाक परवरदिगार ।
गुनह फिल कर देहु दादू, तलब दर दीदार ॥३॥
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आंधी ग्राम में वर्षा तो दादूजी ने प्रभु से प्रार्थना करके कराई थी किन्तु काजी आदि के बहकाने से पीर को पूजने गये तब उनके मुख काले और पैर नीले हो गये । पीर से प्रार्थना की तब पीर ने आकाशवाणी से कहा - वर्षा संत दादूजी ने कराई थी । उनकी पूजा करनी थी किन्तु तुम् लोग कृतघ्न हो इसी से तुम्हारी यह दशा हुई । अब तुम लोग दादूजी के पास हो जाओ वे ही तुमको ठीक करेंगे ।
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फिर दादूजी के पास आकर अति नम्रता से प्रार्थना करने लगे तब दादूजी ने उन कृतघ्नों पर भी कृपा करके उनका कलंक मिटाने के लिये उक्त ३३४ के पद से प्रभु से प्रार्थना की थी । फिर प्रभु की कृपा से सब पूर्ववत ही हो गये थे । फिर हिन्दु मुसलमान दोनों ही दादूजी की कीर्ति का गान करते हुये तथा हरिस्मरण करने का संकल्प करके अपने - २ घरों में चले गये थे ।
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परमारथ को राखिये, कीजे परोपकार ।
दादू सेवक सो भला, शिर नहिं लेवें भार ॥५६॥
(साधु अंग १५)
आंधी से चातुर्मास करके दादूजी पधारने लगे तब पूर्णदास, ताराचन्द ने पू़छा - भगवन् ! अब हमको धन संपत्ति रखते हुये घर में ही रहना चाहिये या घर छोड़कर विरक्त हो जाना चाहिये । तब दादूजी ने उक्त ५६ की साखी उनको कही थी ।

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