गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

= “त्रयो विं. त.” १०/१३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“त्रयोविंशति तरंग” १०/१३)*
.
सांभर में शुद्ध भाषा वाणी रचने का आदेश हुआ - 
यों हरि जी आज्ञा दई, साँभर नगर निवास ।
सम्वत शशी रस दोय पँच, सुदि तृतीया शुचि मास ॥१०॥ 
हरि आज्ञा वाणी रची, निज सिद्धान्त हिं शोध ।
पंथ दिखायो मुक्ति को, अनुभव दृढ परबोध ॥११॥ 
जो प्रश्‍नोत्तर जानि कैं करि उपदेश सुजान ।
संत लिखे ठीकरि घरे, ज्ञानी लिखि शुध मान ॥१२॥ 
पूर्वार्धहिं सैतीस अंग, अन्य च्यार अनुबन्ध ।
युग प्रसाद मंगल तिहूं, जो शुभकारी छन्द ॥१३॥ 
इस तरह श्री हरि ने जब आज्ञा दी, तब मैं साँभर नगर में निवास कर रहा था । श्री हरि की आज्ञानुसार विक्रम संवत् १६२५ को चैत्र शुक्ला तृतीया के दिन वाणी रचना प्रारम्भ की गई । इसमें शोध-शोधकर अनुभव के आधार पर निज सिद्धान्तों को प्रकट किया गया है, जो मुक्ति का पंथ दिखाने वाले हैं और अज्ञान का दृढ़ता से विनाश करने वाले है । 
मेरे द्वारा मौखिक उपदेशरूप में उच्चरित वाणी को ज्ञानी संतों ने ही लिखकर संग्रहीत किया है । विभिन्न समयों पर जिज्ञासु जनों द्वारा जो आध्यात्मिक प्रश्‍न पूछे तथा उनके उत्तर में जो उपदेश दिये गये, उन उपदेशों को संगी संतजन ठीकरियों पर कोयले से लिख लिया करते थे । पश्‍चात् समय मिलने पर पुस्तक पत्रों पर उतार लेते । इस तरह संग्रहीत उपदेशों के इस ग्रन्थ में ज्ञानी गुणी संतों ने प्रकरणों के अनुसार अंग अनुबन्धों का निर्धारण करके पूर्वार्ध सारणी भाग में सैंतीस अंग निश्‍चित किये । 
यह वाणी कलियुग में ईश्‍वर का प्रसाद रूप है, त्रिविध तापों का हरण करने वाली मंगलमयी है । इसका प्रत्येक छन्द शुभकारी मंत्रवत् है । अथ च सम्पूर्ण वाणी में प्रसाद तुल्य चार विश्राम हैं - (१. सूक्ष्मजन्म के अंग तक, २. साखी भाग की संपूर्णता तक, ३. रामकली राग तक, ४. पद भाग की संपूर्णता तक) । तीन बार मंगलाचरण हैं - (आदि मध्य तथा अन्त में) ॥१०-१३॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें