शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

*करड़ाला प्रसंग*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*करड़ाला प्रसंग*
.
३६८. उपदेश । एक ताल
बहुरि न कीजे कपट कांम, हिरदै जपिये राम नांम ॥टेक॥
हरि पाखैं नहिं कहूँ ठांम, पीव बिन खड़भड़ गांम गांम ।
तुम राखो जियरा अपनी मांम, अनत जनि जाय रहो विश्रांम ॥१॥
कपट कांम नहीं कीजे हाँम, रहु चरण कमल कहु राम नांम ।
जब अंतरयामी रहै जांम, तब अक्षय पद जन दादू प्रांम ॥२॥
फिर करड़ाला के पीथा निर्वाण ने सुना कि आजकल दादूजी भुरभुरे में हैं तब पीथा दादूजी के पास भुरभुरे आया और दादूजी से प्रार्थना करके उनको करड़ाले ले आया । पहले पीथा चोरी डकेती करता था किन्तु दादूजी के संग से उसने वे सब छोड़ दिये थे । कु़छ दिन पश्चात् पास के कोटड़ी ग्राम में रास मंडली आई थी ।
.
पीथा ने रास देखना चाहा किन्तु रास मंडली के भोजन आदि के लिये पैसा भी चाहिये, अतः रास देखने के लिये पीथा ने एक सेठ को लूटा । जिसे लूटा था उसको किसी ने कहा - वह दादूजी के पास जाता है तुम दादूजी से कहो वे तुमको तुम्हारा माल दिला देंगे । वह गया और दादूजी को कहा । दादूजी ने पीथा को बुलाकर कहा - तुमने चोरी डकेती छोड़ दी थी फिर इनको कैसे लूटा है ? पीथा ने कहा - मेरे लिये नहीं लूटा है, रास की मंडली के भोजनादि के लिये लूटा है । मैं रास देखना चाहता हूँ ।
.
दादूजी ने कहा - सच्चा रास देखना चाहते हो या झूठा ? पीथा - सच्चा तो कहां देख सकता हूं, नकल ही देखकर संतोष करुंगा । तब दादूजी ने ३६८ का पद सुनाकर कहा - फिर ऐसे कपट के काम नहीं करना, इनका सब धन इनको दे दो और सायंकाल के पश्चात् हमारे पास आ जाना हम तुमको सत्य रास दिखा देंगे । फिर पीथा ने उसका सब धन लौटा दिया और सायंकाल के पश्चात् पीथा दादूजी के पास आगया ।
.
तब दादूजी उसे पर्वत के मध्य शिखर पर जिसको अब रास डूंगरी भी कहते हैं, उस पर ले जाकर प्रथम तो =
४०६. आत्म परमात्म रास । एकताल
घट घट गोपी घट घट कान्ह, घट घट राम अमर अस्थान ॥टेक॥
गंगा जमना अंतर - वेद, सरस्वती नीर बहै प्रस्वेद ॥१॥
कुंज केलि तहं परम विसाल, सब संगी मिल खेलैं रास ॥२॥
तहँ बिन बैना बाजैं तूर, विकसै कँवल चंद अरु सूर ॥३॥
पूरण ब्रह्म परम प्रकाश, तहँ निज देखै दादू दास ॥४॥
यह ४०६ का पद सुनाकर कहा - प्रत्येक शरीर में उक्त पद के समान रास होता ही रहता है । उसी सच्चे रास को तुम तुम्हारे नेत्रों से यहां देखोगे । उक्त पद समाप्त होते ही वहां पर्वत शिखर पर शरद् पूर्णिमा को रात्रि, और यमुना नदी का प्रवाह दीखने लगा । फिर देखते देखते ही कृष्ण और गोपियां प्रकट होकर रास करने लगे । पर उस समय नृत्य दीख रहा था शब्द नहीं सुनाई देता था ।
.
भगवान् कृष्ण कु़छ भी नहीं बोल रहे थे । तब दादूजी ने यह ४२३ का पद -
४२३. गज ताल
मुख बोल स्वामी तूँ अन्तर्यामी, तेरा शब्द सुहावै राम जी ॥टेक॥
धेनु चरावन बेनु बजावन, दर्श दिखावन कामिनी ॥१॥
विरह उपावन तप्त बुझावन, अंगि लगावन भामिनी ॥२॥
संग खिलावन रास बनावन, गोपी भावन भूधरा ॥३॥
दादू तारन दुरित निवारण, संत सुधारण राम जी ॥४॥
दादूजी की प्रार्थना से भगवान् ने पीथा को रास दिखा दिया और फिर गोपियों के सहित सहसा अन्तर्धान हो गये । फिर पीथा ने दादूजी को कहा - अब आप मुझे अपना शिष्य बनालो । दादूजी ने कहा - तुम भजन तो करोगे नहीं धीघोली की घाटी में लूट मार करोगे । तब पीथा ने कहा -
गंग यमुन उलटी बहें, पच्छिम ऊगे भान ।
पीथा चोरी नहिं करे, गुरु दादू की आन ॥
.
फिर पीथा की निष्ठा की परीक्षा करके दादूजी ने ४२९ का पद -
४२९. उपदेश चेतावनी । प्रति ताल
जियरा ! राम भजन कर लीजे ।
साहिब लेखा माँगेगा रे, उत्तर कैसे दीजे ॥टेक॥
आगे जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजे ।
तातैं जिय समझाइ कहूँ रे, सुकृत अब तैं कीजे ॥१॥
राम जपत जम काल न लागे, संग रहै जन जीजे ।
दादू दास भजन कर लीजे, हरि जी की रास रमीजे ॥२॥
इस ४२९ के पद से पीथा निर्वाण को उपदेश दिया था । वह समय वि.सं. १६५३ का था । फिर दादूजी करड़ाले से विद्याद पधारे थे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें