शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

*हरि भज साफल जीवना*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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हरि भज साफल जीवना, परोपकार समाय ।
दादू मरण तहँ भला, जहँ पशु पक्षी खाय ॥५०॥
(स्मरण अंग २)
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आमेर की राज गद्दी पर मानसिंह के बैठने पर मानसिंह को इर्ष्यालु पंडितों ने दादूजी के विरुद्ध विचार प्रकट किये कि वे सबको बराबर कहतें हैं देखिये -
आतम भाई जीव सब, एक पेट परिवार ।
दादू मूल विचारिये, तो दूजा कौन गुवार ॥
उनके व्यवहार हमारी वेद मर्यादा को भी झूठा बना रहे हैं कोई मर जाता है तो उसे वन में छुड़वा देते हैं ।
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अभी इन दिनों में एक साधु मर गया था, उसे वन में छुड़वा दिया था । न आग संस्कार करवाया और न भूमि में गड़वाया । दोनों धर्मों के विपरीत करता है । आपको चाहिये उसे सन्मार्ग पर लायें नहीं तो अधर्म ही बढ़ता जायगा । राजा मानसिंह ने कहा - ठीक है ।
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राजा मानसिंह जब दादूजी के पास गया, तब उसने कहा - मैंने सुना है कि किसी साधु का देहान्त होने पर आपने उसे वन में छुड़वा दिया था । दादूजी ने कहा - संत और शूरों के शरीरों को तो वन के पशु पक्षी ही खाते है । यह उनका उत्तम संस्कार माना जाता है । फिर उक्त साखी भी सुनाई । तब राजा ने कहा - यह तो नवीन बात है । दादूजी ने कहा - संस्कार ६ होते हैं - १. आग, २.भूमि, ३.जल, ४.पवन, ५. विरह, ६. ज्ञान । संत शूरों का पवन संस्कार ही श्रेष्ठ है । राजा ने मान लिया ।
(क्रमशः)

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