सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

१२. चाणक को अंग ~ ३

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१२. चाणक१ को अंग* 
*जोग करै जज्ञ करै, वेद बिधि त्याग करे,*
*जप करै तप करै यूं ही आयु खूटि है ।* 
*यम करै नेम करै तीरथ ऊ ब्रत करै,* 
*पुहमि अटन करै बृथा स्वास टूटि है ॥* 
*जीबै कौ जतन करै मन में बासना धरै,* 
*पचि पचि यौं ही मरै काल सिर कूटि है ।* 
*औरऊ अनेक बिधि कोटिक उपाय करै,* 
*सुन्दर कहत बिनु ज्ञान नहिं छूटि है ॥३॥* 
योगक्रिया, यज्ञक्रिया, वेदविधि(कर्मकाण्ड) के त्याग एवं जप तप आदि क्रियाओं से केवल अपनी आयु को क्षीण करना है । 
यम नियमों के पालन, तीर्थयात्रा या विशेष व्रतविधि एवं भूमण्डल यात्रा आदि से भी अपने अमूल्य श्वास ही नष्ट करते हैं । 
क्योंकि ऐसी साधनाएँ करने वाले पुरुष शरीर से अवश्य साधनाएँ करते हैं, परन्तु मन में उनके विविध वासनाएँ उद्भूत होती रहती हैं । 
वे इन साधनाओं में व्यर्थ परिश्रम करते रहते हैं और मृत्यु उनके शिर पर कुठाराघात करती रहती है । *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं, जन्म - मरण से छुटकारा पाने के लिये कितने ही उपाय कर लीजिये, ज्ञान के बिना मुक्ति असम्भव है ॥३॥ 
(क्रमशः)

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