रविवार, 19 अक्टूबर 2014

#daduji 
॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
२५. हितोपदेश । चटताल ~
जियरा मेरे सुमिर सार, काम क्रोध मद तज विकार ॥ टेक ॥
तूँ जनि भूले मन गँवार, शिर भार न लीजे मान हार ॥ १ ॥
सुन समझायो बार - बार, अजहूँ न चेतै, हो हुसियार ॥ २ ॥
कर तैसे भव तिरिये पार, दादू अब तैं यही विचार ॥ ३ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि अपने को उपदेश करके कहते हैं कि हे हमारे जीव ! सबका सार स्वरूप जो परमेश्‍वर है, उनके नाम का निष्काम स्मरण कर । काम, क्रोध, आठ प्रकार का मद आदि, इन सम्पूर्ण विकारों का त्याग कर । हे हमारे मन ! ‘गँवार’ कहिये विषयों के यार ! प्रभु के स्मरण को नहीं भूलना और पाप का बोझा सिर पर नहीं लेना । प्रभु के स्मरण से हार नही मानना । गुरु और संतों ने मुझे अपने शब्दों के द्वारा तुझे बार - बार समझाया है, उसी को सुनकर विचार कर । तूँ अभी भी नहीं चेत रहा है । अब इस अज्ञानता को छोड़कर प्रभु - स्मरण में लीन हो । हे मन ! अब वैसा ही काम कर, जिससे इस संसार - सागर से पार हो सके । अब तूँ केवल यही एक विचार कर ।

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