शनिवार, 18 अक्टूबर 2014

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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२४. उपदेश चेतावनी । एकताल ~
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कैसे जीविये रे, 
साँई संग न पास ?
चंचल मन निश्‍चल नहीं, 
निशिदिन फिरे उदास ॥टेक॥
नेह नहीं रे राम का, 
प्रीति नहीं परकाश ।
साहिब का सुमिरण नहीं, 
करे मिलन की आश ॥१॥
जिस देखे तूँ फूलिया रे, 
पाणी पिंड बधाणां मांस ।
सो भी जल - बल जाइगा, 
झूठा भोग विलास ॥२॥
तो जीवीजे जीवणां, 
सुमिरै श्‍वासै श्‍वास ।
दादू प्रकट पीव मिलै, 
तो अंतर होइ उजास ॥३॥
टीका ~ जिज्ञासुओं को उपदेश द्वारा सावधान कर रहे हैं कि यह चंचल मन, प्रभु से उपराम होकर, रात - दिन विषय - वासनाओं में लग रहा है । ऐसी स्थिति में, हे जिज्ञासु ! तूँ कैसे जी रहा है ? 
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तेरे हृदय में राम का स्नेह और प्रीति नहीं है, तो फिर हृदय में ज्ञान का प्रकाश कैसे होवेगा ? और न परमेश्‍वर का स्मरण ही करता है, फिर भी परमेश्‍वर को प्राप्त करने की आशा रखता है । 
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जिस शऱीर को देख - देखकर, तूँ फूल रहा है, यह तो पानी और मांस की पोट का बना है । यह भी स्थिर नहीं रहेगा । यह या तो जल जायेगा अथवा मिट्टी में गल जायेगा । जो तूँ जानता है कि मैं इसके द्वारा भोगों को भोगता हूँ, ये भोग और भोगने वाला शरीर सभी मिथ्या हैं । 
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जो तेरे को जीना है, तो सबका जीवनरूप उस परमेश्‍वर का श्‍वास - श्‍वास पर स्मरण कर । जब तेरे अन्तःकरण में ज्ञान का प्रकाश होगा, तब वह मुख - प्रीति का विषय परमेश्‍वर तुझे आत्मस्वरूप से ही साक्षात् होकर दर्शन देंगे ।
“निमिष मुहूरत नाम ले, तिल पल सुमिरण होइ ।
जन रज्जब या उम्र में, सफल बरियां सोइ ॥२४॥”
(क्रमशः)

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