#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*१२. चाणक को अंग*
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*जौ कोउ कष्ट करै बहुत भांतिनि,*
*जात अज्ञान नहीं मन केरौ ।*
*ज्यौं तम पूरि रह्यौ घर भीतर,*
*कैसैंहु दूर नहोत अंधेरौ ॥*
*लाठिनि मारिये ठेलि निकारिये,*
*और उपाय करै बहुतेरौ ।*
*सुन्दर सूर प्रकाश भयौ तब,*
*तौ कतहूं नहिं देखिये नेरौ ॥११॥*
कोई साधक कितनी भी अत्यधिक क्लेशकारक तपस्या क्यों न करे जब तक उस के मन अज्ञान निवृत्त न हो, तब तक उसका कोई लाभ न होगा ।
जैसे घर का अन्धकार, अन्य कितने भी उपाय कीजिये, निवृत्ति नहिं हुआ करता;
भले ही उसे लाठियों से पीटिये या उसे हटाने अन्य कोई अपूर्व उपाय करते रहिये ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वह अन्धकार सूर्य का प्रकाश होने पर ही निवृत्त हो पाता है, फिर वह समीप में कहीं दिखायी नहीं देता । इसी तरह, वासना त्यागने पर अज्ञानान्धकार नष्ट हो पायगा ॥११॥
(क्रमशः)

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