बुधवार, 12 नवंबर 2014

= १८२ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
मन मृगा मारै सदा, ताका मीठा मांस । 
दादू खाइबे को हिल्या, तातैं आन उदास ॥ 
दादू देह जतन कर राखिये, मन राख्या नहीं जाइ । 
उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाइ ॥ 
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आनंद ~ 
अधार्मिक होना और दुखी होना, एक ही बात को कहने के दो ढंग हैं। इसलिए कोई कभी कल्पना न करे कि अधार्मिक होते हुए भी कोई व्यक्ति कभी आनंदित हो सकता है। यह असंभव है। जैसे शरीर की बीमारियां हैं, और शरीर से बीमार आदमी कैसे आनंदित हो सकता है ? शरीर तो स्वस्थ चाहिए। वैसे ही आत्मा की बीमारियां भी हैं। अधर्म आत्मा की बीमारी का नाम है। जो आत्मा की बीमारी में पड़ा हुआ है वह कैसे आनंदित हो सकता है ? शरीर दुखी हो तो भी एक आदमी भीतर आनंदित हो सकता है। लेकिन भीतर की आत्मा ही दुखी हो तब तो आनंदित होने की कोई उम्मीद नहीं है, कोई आशा नहीं है। लेकिन जिस आत्मा को आनंदित करना है, उस आत्मा के लिए हम कुछ भी नहीं करते, शरीर के लिए सब कुछ करते हैं। 
ओशो.........

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