रविवार, 19 अक्टूबर 2014

*गुठला प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*गुठला प्रसंग*
४३३. हित उपदेश । चौताल
मनसा मन शब्द सुरति, पाँचों थिर कीजे ।
एक अंग सदा संग, सहजैं रस पीजे ॥टेक॥
सकल रहित मूल गहित, आपा नहिं जानैं ।
अन्तर गति निर्मल रति, एकै मन मानैं ॥१॥
हिरदै सुधि विमल बुधि, पूरण परकासै ।
रसना निज नाम निरख, अन्तर गति वासै ॥२॥
आत्म मति पूरण गति, प्रेम भगति राता ।
मगन गलित अरस परस, दादू रस माता ॥३॥
गुठला ग्राम में वहां के दामोदर भक्त को उक्त ४३३ के पद से उपदेश किया था । फिर वे दादूजी के शिष्य हो गये थे । ये १०० शिष्यों में है ।

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