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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*आमेर प्रसंग*
११५. चेतावनी । पंचम ताल
भाई रे यूं विनशै संसारा, काम क्रोध अहंकारा ॥टेक॥
लोभ मोह मैं मेरा, मद मत्सर बहुतेरा ॥१॥
आपा पर अभिमाना, केता गर्व गुमाना ॥२॥
तीन तिमिर नहिं जाहीं, पंचों के गुण माहीं ॥३॥
आतमराम न जाना, दादू जगत दीवाना ॥४॥
उक्त ११५ के पद से दादूजी ने वाजीद को उपदेश किया था ।
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वाजीद के वैराग्य का समर्थन करके फिर दादूजी ने ९४ के पद से वाजीद को तत्व का उपदेश किया था । फिर वाजीद दादूजी के शिष्य हो गये थे और आमेंर में ही रहकर भजन करने लगे थे । एक दिन वाजीद एक बड़ा और सुन्दर गैंदे का फूल आमेर नरेश मानसिंह के बगीचे से तोड़कर दादूजी को दिखाने लाये थे । दादूजी के आगे रखकर कहा था देखिये स्वामिन् ! यह फूल कितना सुन्दर है ।
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यह सुनकर वाजीद को सचेत करने के लिये दादूजी ने ये साखियाँ सुनाई थी -
दादू रीझे राम पर, अनत न रीझे मन्न ।
मीठा भावे एक रस, दादू सोई जन्न ॥२०॥
दादू मेरे हृदय हरि बसे, दूजा नांही और ।
कहो कहाँ धौ रखिये, नहीं आन को ठौर ॥२१॥
दादू नारायण नैना बसे, मनहीं मोहनराय ।
हिरदा माँहीं हरि बसे, आतम एक समाय ॥२२॥
(निष्का. पतिव्रता अंग ८)
फिर कहा था - वाजीद ! तुम अनात्म पदार्थो की सुन्दरता पर ही रीझ रहे हो, इनके बनाने वाले परमात्मा की सुन्दरता को नहीं देखते । उसके आगे इनकी सुन्दरता कु़छ भी नहीं है । तब वाजीद ने अपनी भूल स्वीकार करके गुरुजी को प्रणाम करके कहा - अब ऐसा नहीं होगा ।
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दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, सबद ऊपने पास ।
तहाँ एक एकांत है, जहाँ ज्योति प्रकास ॥१८॥
दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, जहँ चन्द न ऊगे सूर ।
निरंतर निर्धार है, तेज रह्या भरपूर ॥१९॥
दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, जहँ बिन जिह्वा गुण गाइ ।
तहँ आदि पुरुष अलेख है, सहजैं रह्या समाइ ॥२०॥
दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, जहँ अजरा अमर उमंग ।
जरा मरण भौ भाजसी, राखै अपणे संग ॥२१॥
(परिचय अंग ४)
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आमेर में एक दिन दादूजी के शिष्य चांदाजी ने दादूजी से प्रार्थना की - स्वामिन् ! मैं आपकी जन्म - भूमि गुजरात को देखना चाहता हूँ । इस निमित्त से आपके जीवन सम्बन्धी कु़छ विशेष खोज भी हो जायेगी । तब दादूजी ने कहा - वहां क्या खोजने जा रहे हो ? खोज ही करना है तो अपने भीतर नाभि नासिका के बीच खोजो । भीतर की खोज से ही हृदयदेश में साक्षी रूप ब्रह्म का साक्षात्कार होता है । बाहर भटकने से कु़छ भी लाभ नहीं है । यह कहकर उक्त चार साखियाँ उनको सुनाई थीं ।
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