शनिवार, 1 नवंबर 2014

= “त्रयो विं. त.” २९/३० =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” २९/३०)*
*श्री दादूजी दादू खोहल में*
भोज नरायण दुर्गा जन सब, 
संग समीपहिं देखि उपासी ।
दास गरीब तथा मसकीन जु, 
जैमल मोहन होत उदासी ।
दास दयाल दमोदर रज्जब, 
दर्श कियो सब ही सुखराशी ।
शोचत साधु जु टीलो नहीं अब, 
ऐ किन बात रची अविनाशी ॥२९॥ 
राजा नारायणसिंह, भोजराज, दुर्गादास आदि पालकी के समीप ही खड़े थे । गरीबदास मसकीनदास, जैमल, मोहनदास तो गुरु वियोग से अत्यन्त व्याकुल हो रहे थे । दयालदास दामोदर और रज्जबजी एक टक गुरुदर्शन में भाव विभोर हो रहे थे । सभी साधु यह सोच रहे थे कि इस समय टीलाजी नहीं है । चलो अच्छा ही हुआ, अविनाशी श्री हरि की प्रेरणा से यह परिस्थिति बनी, कि टीलाजी गुरुदेव के अन्तरध्यान की समय उपस्थित नहीं है, यदि होते तो गुरु वियोग नहीं सह सकने के कारण न जाने क्या दशा होती ॥२९॥
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*सब शिष्य लोग भाव विभोर थे*
धन्य भयो पहिले गुरु पठियो, 
हो निज सेवक हाजर त्यागी ।
आप कही करिये भक्ति सब, 
यूं कहि चार भुजा तप धारी ।
देखत पालकि व्योम चढी तब, 
दिव्य प्रकाश भयो नभ दूरी ।
जै जय शब्द अकाश कहै सुर, 
वर्षत पुष्प सु शैल संपूरी ॥३०॥ 
गुरुदेव श्री दादूजी टीला जी की मन:स्थिति जानते थे, अत: पहले ही उन्हें दूर भेज दिया । हजूरी सेवक संत प्रयाण(रवाना) को किस विध देख पाता, निश्‍चित ही वह व्याकुल होकर अपना जीवन भी त्याग देता । इस तरह साधु जन चर्चा कर रहे थे, तभी सबके देखते - देखते ही पालकी गुफा के सामने रूकी सभी को दर्शन हुये, संतों भक्तों सत्यराम संतों भक्तों सत्यराम तीन बार सभी को आशीर्वाद वचन दिया, फिर पालकी आकाश में चढ़ने लगी । उसका दिव्य प्रकाश आकाश में दूर - दूर तक फैल गया । अन्तरिक्ष में ‘‘जय - जय’’ का उद्घोष होने लगा । सारे पर्वत पर पुष्प वर्षा होने लगी गुप्त पालकी भई छीन माहि की जय ॥३०॥
(क्रमशः)

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