शनिवार, 1 नवंबर 2014

#daduji 

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
३५. परिचय सत्संग । दीपचन्दी ताल ~
सत्संगति मगन पाइये, गुरु प्रसादैं राम गाइये ॥ टेक ॥
आकाश धरणी धरीजे, धरणी आकाश कीजे, 
शून्य माहिं निरख लीजे ॥ १ ॥
निरख मुक्ताहल मांहैं साइर आयो, 
अपने पिया हौं ध्यावत खोजत पायौ ॥ २ ॥
सोच साइर अगोचर लहिये, 
देव देहुरे मांही कवन कहिये ॥ ३ ॥
हरि को हितार्थ ऐसो लखै न कोई, 
दादू जे पीव पावै अमर होई ॥ ४ ॥
टीका ~ अब ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव सत्संग से साक्षात्कार होने की प्रक्रिया बता रहे हैं कि निरंतर सत्संग में लगे रहकर, कृपा - पूर्वक सतगुरु की बताई हुई विधि से राम का स्मरण करते हुए राम को प्राप्त करो और ब्रह्मस्वरूप आकाश को वृत्ति - रूप पृथ्वी में धारण करो अर्थात् निरन्तर ब्रह्माकार वृत्ति बनाये रखो । वृत्ति रूप पृथ्वी को, ब्रह्म रूप आकाश में अभेद करो अर्थात् वृत्ति को निर्विकार बनाकर फिर सहज समाधि द्वारा परब्रह्म का साक्षात्कार करो । इस प्रकार देखने पर ही, हृदय रूप सरोवर में परमात्मा रूप मोती, हमारी ज्ञानदृष्टि से देखने में आया है । हमने अन्तर्गत ध्यान तथा विवेक - विचार द्वारा खोजकर अपने प्रभु को अन्तःकरण में ही प्राप्त कर लिया है । हे साधकों ! तुम भी इस प्रकार अन्तःकरण रूप सरोवर में ही इन्द्रियों के अविषय परब्रह्म को साक्षात्कार प्राप्त करो । वह परब्रह्म किसी मन्दिर, मस्जिद आदि में ही नहीं है, किन्तु वह सर्वत्र परिपूर्ण रूप से व्यापक है, परन्तु अपने कल्याण के लिये, उक्त प्रकार से बताये हुए परमेश्‍वर को अज्ञानी मानव कोई भी नहीं जानते हैं । यदि सतगुरु कृपा से उपरोक्त मार्ग के द्वारा, ब्रह्म स्वरूप आत्मा को जान लेवे, तो वह ब्रह्म - स्वरूप ही हो जाता है ।
मनखा देही दिन उदय, जन रज्जब भज तात । 
चौरासी लख जीव की, देही दीरघ रात ॥ ३५ ॥
वित्त ऊपर बीति पड़ी, नर नारायण देह । 
जन रज्जब जगदीश भज, जन्म सफल कर लेह ॥ ३५ ॥

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