#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू मन चित आतम देखिये, लागा है किस ठौर ?
जहँ लागा तैसा जाणिये, का देखै दादू और ॥
दादू बाहर का सब देखिये, भीतर लख्या न जाइ ।
बाहर दिखावा लोक का, भीतर राम दिखाइ ॥
दादू दूजा कहबे को रह्या, अन्तर डारा धोइ ।
ऊपर की ये सब कहैं, मांहि न देखै कोइ ॥
दादू जैसे मांहि जीव रहै, तैसी आवै बास ।
मुख बोले तब जानिये, अन्तर का परकास ॥
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साभार : Poojya Acharya Bal Krishan Ji Maharaj ~
*जैसी सोच, वैसी ही गतिविधियां*
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वृद्घ व्यक्ति ने अपने गाँव में नये व्यक्ति देखा। जिज्ञासावश पूछा: आप श्रीमान कौन ?
व्यक्ति - मैं आपके गाँव के स्कूल में टीचर हूँ।
वृद्घ - आपके परिवार में कौन-कौन हैं ?
व्यक्ति - मैं हूँ, मेरी पत्नी है, मेरे दो बच्चे हैं और बूढी माँ है, उसको भी हमने अपने पास ही रख लिया है।
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कुछ समय पश्चात् फिर नया एक व्यक्ति गाँव में दिखाई दिया। वृद्घ ने उससे भी पूछा: आप श्रीमान कौन हैं ?
दूसरा व्यक्ति - मैं आपके गाँव में पोस्ट ऑफिस में नया कर्मचारी हूँ।
वृद्घ - आपके परिवार में कौन-कौन है ?
दूसरा व्यक्ति - मैं हूँ, मेरी पत्नी है, दो बच्चे हैं। हम सभी अपनी माँ के पास रहते हैं।
एक परिस्थिति - दो मन:स्थिति। हमें सोचना है कि हमने अपने मां-बाप को अपने पास रखा है या हम अपने मां-बाप के साथ रहते हैं।
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