रविवार, 9 नवंबर 2014

#daduji

१९ ~ विश्वास का अंग ~ श्री दादूवाणी ~ http://youtu.be/asULU5wcwsQ

मंगलाचरण
दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥ १ ॥

दादू सहजैं सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम ।
काहे को कलपै मरै, दुःखी होत बेकाम ॥ २ ॥

सांई किया सो ह्वै रह्या, जे कुछ करै सो होइ ।
कर्ता करै सो होत है, काहे कलपै कोइ ॥ ३ ॥

दादू कहै जे तैं किया सो ह्वै रह्या, जे तूं करै सो होइ ।
करण करावण एक तूं, दूजा नांहीं कोइ ॥ ४ ॥

दादू सोई हमारा सांइयां, जे सबका पूरणहार ।
दादू जीवन मरण का, जाके हाथ विचार ॥ ५ ॥

दादू स्वर्ग भुवन पाताल मधि, आदि अंत सब सृष्ट ।
सिरज सबन को देत है, सोई हमारा इष्ट ॥ ६ ॥

करणहार कर्त्ता पुरुष, हमको कैसी चिंत ।
सब काहू की करत है, सो दादू का दादू मिंत ॥ ७ ॥

दादू मनसा वाचा कर्मणा, साहिब का विश्वास ।
सेवक सिरजनहार का, करे कौन की आस? ८ ॥

श्रम न आवै जीव को, अनकिया सब होइ ।
दादू मारग मिहर का, बिरला बूझै कोइ ॥ ९ ॥

दादू उद्यम औगुण को नहीं, जे कर जाणै कोइ ।
उद्यम में आनन्द है, जे सांई सेती होइ ॥ १० ॥

दादू पूरणहारा पूरसी, जो चित रहसी ठाम ।
अन्तर तैं हरि उमग सी, सकल निरंतर राम ॥11॥

पूरक पूरा पास है, नाहीं दूर, गँवार ।
सब जानत हैं, बावरे ! देबे को हुसियार ॥12॥

दादू चिन्ता राम को, समर्थ सब जाणै ।
दादू राम संभाल ले, चिंता जनि आणै ॥13॥

दादू चिन्ता कियां कुछ नहीं, चिंता जीव को खाइ ।
होना था सो ह्वै रह्या, जाना है सो जाइ ॥14॥
                                                   
प्रतिपाल
दादू जिन पहुँचाया प्राण को, उदर उर्ध्व मुख खीर ।
जठर अग्नि में राखिया, कोमल काया शरीर ॥ १५ ॥

दादू समर्थ संगी संग रहै, विकट घाट घट भीर ।
सो सांई सूं गहगही, जनि भूलै मन बीर ॥ १६ ॥

गोविन्द के गुण चिंत कर, नैन, बैन, पग, शीश ।
जिन मुख दिया कान, कर प्राणनाथ जगदीश ॥ १७ ॥

तन मन सौंज सँवार सब, राखै बिसवा बीस ।
सो साहिब सुमिरै नहीं, दादू भान हदीस ॥ १८ ॥

दादू सो साहब जनि विसरै, जिन घट दिया जीव ।
गर्भवास  में  राखिया, पालै  पोषै  पीव ॥ १९ ॥

दादू राजिक रिजक लिये खड़ा, देवे हाथों हाथ ।
पूरक पूरा पास है, सदा हमारे साथ ॥ २० ॥

हिरदै राम सँभाल ले, मन राखै विश्वास ।
दादू समर्थ सांइयां, सब की पूरै आस ॥ २१ ॥

दादू सांई सबन को, सेवक ह्वै सुख देइ ।
अया मूढ मति जीव की, तो भी नाम न लेइ ॥ २२ ॥

दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।
सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥ २३ ॥

समर्थ साक्षीभूत
धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।
सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥ २४ ॥

दादू हौं बलिहारी सुरति की, सबकी करै सँभाल ।
कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल ॥ २५ ॥

विश्वास
दादू छाजन भोजन सहज में, संइयाँ देइ सो लेइ ।
तातैं अधिका और कुछ, सो तूं कांई करेइ ॥ २६ ॥

दादू टूका सहज का, संतोषी जन खाइ ।
मृतक भोजन, गुरुमुखी काहे कलपै जाइ ॥ २७ ॥

दादू भाड़ा देह का, तेता सहज विचार ।
जेता हरि बिच अंतरा, तेता सबै निवार ॥ २८ ॥

दादू जल दल राम का, हम लेवैं परसाद ।
संसार का समझैं नहीं, अविगत भाव अगाध ॥ २९ ॥

परमेश्वर के भाव का, एक कणूँका खाइ ।
दादू जेता पाप था, भ्रम कर्म सब जाइ ॥ ३० ॥

दादू कौण पकावै, कौण पीसै, जहाँ तहाँ सीधा ही दीसै ॥ ३१ ॥

दादू जे कुछ खुसी खुदाइ की, होवेगा सोई ।
पच पच कोई जनि मरै, सुन लीज्यो लोई ॥ ३२ ॥

दादू छूट खुदाइ कहीं को नांही, फिरिहो पृथ्वी सारी ।
दूजी दहन दूर कर बौरे, साधू शब्द विचारी ॥ ३३ ॥

दादू बिना राम कहीं को नांही, फिरिहो देश विदेशा ।
दूजी दहन दूर कर बौरे, सुनि यहु साधु संदेशा ॥ ३४ ॥

दादू सिदक सबूरी साच गह, साबित राख यकीन ।
साहिब सौं दिल लाइ रहु, मुरदा ह्वै मसकीन ॥ ३५ ॥

दादू अनवांछित टूका खात हैं, मर्महि लागा मन ।
नाम निरंजन लेत हैं, यों निर्मल साधु जन ॥ ३६ ॥

अनबांछा आगे पड़ै, खिरा विचार रु खाइ ।
दादू फिरै न तोड़ता, तरुवर ताक न जाइ ॥ ३७ ॥

अनबांछा आगे पड़ै, पीछे लेइ उठाइ ।
दादू के सिर दोष यहु, जे कुछ राम रजाइ ॥ ३८ ॥

अनबांछी अजगैब की, रोजी गगन गिरास ।
दादू सत करि लीजिये, सो सांई के पास ॥ ३९ ॥

कर्त्ता कसौटी
मीठे का सब मीठा लागै, भावै विष भर देइ ।
दादू कड़वा ना कहै, अमृत कर कर लेइ ॥ ४० ॥

विपति भली हरि नाम सौं, काया कसौटी दुख ।
राम बिना किस काम का, दादू संपति सुख ॥ ४१ ॥

विश्वास संतोष
दादू एक बेसास बिन, जियरा डावांडोल ।
निकट निधि दुःख पाइये, चिंतामणि अमोल ॥ ४२ ॥

दादू बिन बेसासी जीयरा, चंचल नांही ठौर ।
निश्चय निश्चल ना रहै, कछू और की और ॥ ४३ ॥

दादू होना था सो ह्वै रह्या, स्वर्ग न बांछी धाइ ।
नरक कनै थी ना डरी, हुआ सो होसी आइ ॥ ४४ ॥

दादू होना था सो ह्वै रह्या, जनि बांछे सुख दुःख ।
सुख मांगे दुख आइसी, पै पीव न विसारी मुख ॥ ४५ ॥

दादू होना था सो ह्वै रह्या, जे कुछ किया पीव ।
पल बधै न छिन घटै, ऐसी जानी जीव ॥ ४६ ॥

दादू होना था सो ह्वै रह्या, और न होवै आइ ।
लेना था सो ले रह्या, और न लिया जाइ ॥ ४७ ॥

ज्यों रचिया त्यों होइगा, काहे को सिर लेह ।
साहिब ऊपरि राखिये, देख तमाशा येह ॥ ४८ ॥

पतिव्रता निष्काम
ज्यों जाणों त्यों राखियो, तुम सिर डाली राइ ।
दूजा को देखूं नहीं, दादू अनत न जाइ ॥ ४९ ॥

ज्यों तुम भावै त्यों खुसी, हम राजी उस बात ।
दादू के दिल सिदक सौं, भावै दिन को रात ॥ ५० ॥

दादू करणहार जे कुछ किया, सो बुरा न कहना जाइ ।
सोई सेवक संत जन, रहबा राम रजाइ ॥ ५१ ॥

विश्वास-संतोष
दादू कर्त्ता हम नहीं, कर्त्ता औरै कोइ ।
कर्त्ता है सो करेगा, तूं जनि कर्त्ता होइ ॥ ५२ ॥

हरि भरोसा
काशी तज मगहर गया, कबीर भरोसे राम ।
सैंदेही सांई मिल्या, दादू पूरे काम ॥ ५३ ॥

दादू रोजी राम है, राजिक रिजक हमार ।
दादू उस प्रसाद सौं, पोष्या सब परिवार ॥ ५४ ॥

पंच संतोषे एक सौं, मन मतिवाला मांहि ।
दादू भागी भूख सब, दूजा भावै नांहि ॥ ५५ ॥

दादू साहिब मेरे कापड़े, साहिब मेरा खाण ।
साहिब सिर का ताज है, साहिब पिंड प्राण ॥ ५६ ॥

विनती
सांई सत संतोष दे, भाव भक्ति विश्वास ।
सिदक सबूरी साँच दे, माँगेदादू दास ॥ ५७ ॥

इति श्री दादूदास-विरचिते सतगुरु-प्रसादेन प्रोक्तं भक्ति योगनाम तत्वसारमत-सर्वसाधुर्बुद्धिज्ञान-सर्वशास्त्र-शोधितं रामनाम सतगुरुशिक्षा धर्मशास्त्र-सत्योपदेश-ब्रह्मविद्यायां मनुष्य जीवनाम् नित्य-श्रवणं पठनं मोक्षदायकम् श्री दादूवाणीनाम् माहात्म्य उन्नीसवां विश्वास का अंग सम्पूर्ण ॥ अंग १९ ॥ साखी ५७ ॥

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