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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्विंशति तरंग” २६/२७)*
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*त्रोटक छन्द*
*देवगण आये हुये भी पधारे गये ~*
सब साधु जु सत्यहि राम करें,
बरसी मधि आवत यूं उचरे ॥
गुरु आयसु साधु सुसिद्ध करें,
शुचि सेवक संत सभी विचरे ॥
सुर साधु जु आयसु पाय पदा,
ॠधियाँ सिद्धियां सब होत विदा ।
निज ईश्वर का जयकार करें,
दिपी हैं, भुवि दास-गरीब हरे ॥२६॥
प्रस्थान करते समय सभी साधु संत, भक्त सेवक ‘सत्यराम’ बोल रहे थे । अगले वर्ष बरसी महोत्सव में पुन: आने का संकल्प प्रकट कर रहे थे । गुरु गद्दी पर विराजमान गरीबदास जी की आज्ञा लेकर सभी जन सुसिद्ध कर गये, अपने - अपने स्थानों के लिये पधार गये । साधु वेश में पधारे हुये अनेक देवता तथा ॠद्धियाँ और सिद्धियाँ भी गरीबदासजी से विदा लेने आई । मन ही मन उन सबकी महिमा समझते हुये स्वामीजी ने कृतज्ञता के साथ सभी को विदा किया । सभी ईश्वर का जय - जयकार करते हुये, तथा गरीबदास जी को गुरु आसन पर देदीप्यमान रहने का आशीर्वाद देते हुये पधार गये ॥२६॥
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*इन्दव छन्द*
*राम चौक में राजा और संतों की सभा ~*
भूप नारायण भोज रु दुर्गा,
स्वामिजि सेवक सर्व बुलाये ।
रामहिं चोक सभा करि बैठत,
स्वामिजु आसन पे पधराये ।
भ्रातहिं भूप ! सुनो जन सेवक,
मात्र निमित्त हुं बैठि रहाये ॥
स्थान रु धाम संभाल करो तुम,
ये सब भार तुम्हीं शिर भाये ॥२७॥
तत्पश्चात् स्वामी गरीबदास जी ने राजा नारायणसिंह, भोजराज तथा दुर्गादास को बुलाकर उपस्थित संत और सेवकों के साथ राम चौक में सभा आयोजित की । आसन पर विराजमान होकर सभी से निवेदन किया कि - हे गुरुभाईयों ! तथा हे राजाजी ! और सेवकों ! में तो इस गुरु आसन पर निमित्त मात्र बैठा हूँ इस स्थान और धाम की सार संभाल आप लोग ही करना, सारा भार आपके ही शिर पर है ॥२७॥
इति माधवदास विरचिते श्री संतगुण सागरामृत गुरु महोत्सव संत सम्मेलन निरूपण ॥ इति चौबीसवीं तरंग सम्पूर्ण ॥२४
(क्रमशः)
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