गुरुवार, 13 नवंबर 2014

= १८३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
राम नाम तत काहे न बोलै, 
रे मन मूढ़ अनत जनि डोलै ॥टेक॥ 
भूला भरमत जन्म गमावै, 
यहु रस रसना काहै न गावै ॥१॥ 
क्या झक औरै परत जंजालै, 
वाणी विमल हरि काहे न सँभालै ॥२॥ 
राम विसार जन्म जनि खोवै, 
जपले जीवन साफल होवै ॥३॥ 
सार सुधा सदा रस पीजे, 
दादू तन धर लाहा लीजे ॥४॥ 
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साभार : Shree Ram Sharnam ~ 
जिसके रखवाले हैं राम; उसके कौन बिगाड़े काम ! 
लगभग ४०० वर्ष पूर्व तमिलनाडू में त्यागराज नामक राम भक्त हुए है !वह उत्तम कवि भी थे; प्रभु राम के स्वयं-रचित भजन गाया करते एवं सदैव राम नाम में डूबे रहते थे !
एकदा उन्हें दूसरे नगर में जाना था; रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था !जंगल में से गुजरते समय उन्हें लूटने के लिये दो लुटेरे उनके पीछे लग गये ! पर त्यागराज अपनी ही धुन में भजन गुनगुनाते हुए जा रहे थे ! पांच घंटों के उपरांत जब वह दूसरे नगर के निकट पहुंचे तो उस समय दोनों चोर उनके पैरों में गिर पड़े ।
त्यागराज चकित हुए, पूछा - अरे भाई आप मेरे पैर क्यों छू रहे हो ? उन्होंने कहा - हम चोर हैं, आपके पास जो कुछ भी है उसे हम लूटना चाहते थे परंतु आपके निकट आपके अंगरक्षक होने से हम आपको कुछ नहीं कर पाये !उन्होंने हमें पहचान लिया; वे हमे पकडने वाले थे परंतु हमने उनसे क्षमा मांगी और उनके पैर छूने लगे !
तब उन्होंने कहा - हमे नमस्कार करने की अपेक्षा त्यागराज को नमस्कार करो तो ही हम आपको छोडेंगे इसलिये हम आपके पैर छू रहे हैं ! त्यागराज ने पूछा - कौन से दो अंगरक्षक; मैंने तो किसी को भी साथ में नहीं लिया था ! यह कह कर त्यागराज इधर-उधर देखने लगे पर वहां कोई भी नहीं था ! चोरों को भी आश्चर्य हुआ; दोनों अंगरक्षक अदृश्य हो गये थे ! त्यागराज ने उनसे पूछा - वह अंगरक्षक दिखने में कैसे थे ? चोरों ने कहा - दोनों के कंधों पर धनुष्य-बाण थे; मस्तक पर मुकुट था और दोनों युवा थे !
त्यागराज की अंतरात्मा को समझते तनिक भी देर न लगी कि चोरों को दिखाई दिये अंगरक्षक स्वयं प्रभु श्री राम और लक्ष्मण ही थे ! त्यागराज ने चोरों से कहा - आप परम भाग्यशाली हो; मैं रामभक्त हूँ पर मुझे अभी तक उनके दर्शन नहीं हुए ! आप चोर हो और रामभक्त भी नहीं हो तब भी आपको प्रभु राम के दर्शन हुए; यदि मैं चोर होता तो अच्छा होता ! यह कहकर तो राम भक्त त्यागराज के नेत्रो से आसुओं की अविरल धारा बह निकली ! तुरंत भगवान श्री रामचन्द्र ने लक्ष्मण सहित भक्त त्यागराज को दर्शन दे कर कृतार्थ कर दिया ! 
जय श्री राम

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