गुरुवार, 13 नवंबर 2014

= १८४ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
राम विमुख जग मर मर जाइ, 
जीवैं संत रहैं ल्यौ लाइ ॥टेक॥ 
लीन भये जे आतम रामा, 
सदा सजीवन कीये नामा ॥१॥ 
अमृत राम रसायन पीया, 
तातैं अमर कबीरा कीया ॥२॥ 
राम राम कह राम समाना, 
जन रैदास मिले भगवाना ॥३॥ 
आदि अंत केते कलि जागे, 
अमर भये अविनासी लागे ॥४॥ 
राम रसायन दादू माते, 
अविचल भये राम रंग राते ॥५॥ 
------------------------------ 
Rp Tripathi ~ **स्थाई आनंद का मंत्र ..?** 

एक बार प्रसिद्धि वैज्ञानिक आइंसटीन ने, अपने एक व्याख्यान के दौरान कहा कि, वह जितने भी प्रयोग करते थे उनमें, 95% ग़लत होते थे ..!! तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, और एक पत्रकार ने, पूँछ ही लिया :-- तो फिर आप इतने महान वैज्ञानिक, कैसे बन गए ..? आइंसटीन ने, बड़ी सरलता से मुस्कराते हुए जबाब दिया, प्रत्येक पल, हमारे पास दो विकल्प मौंजूद हैं :-- 

1. प्रथम :--- दूसरों और स्वयं की गलतियों से सीख ले, उन्हें जीवन में ना दुहराना ..!! 

2. द्वितीय :--- कुछ सीखने की चाह ही ना रखना, और बार बार, जाने या अनजाने, जीवन में वही गलतियाँ, बार बार दुहरातें रहना ..!! 

बस में अपने आपको, ईस्वर-प्रदत्त, स्वतंत्र-इक्छा-शक्ति(Freedom of choice) की सहायता से स्वयं को, प्रथम श्रेणी में रखता हूँ ..!! 

परन्तु मित्रों, जैंसा हम सब जानते हैं, आज आइंसटीन के शोध को भी, उसी तरह, सुधारा जा रहा है, जैंसा उन्होंने, दूसरे वैज्ञानिकों की खोजो के साथ किया ...!! और यह सिलसिला अनंत समय तक चलता रहेगा, जब तक वैज्ञानिक, आत्म-ज्ञानी ना बन जाएँ ..!! 

इस विषय को, और अधिक स्पष्टता से दर्शित करने के लिए, सर्कश के एक जोकर का मनोकल्पित परन्तु पूर्णतः सारगर्भित, कथन याद करते हैं :--- 

एक बार एक सर्कस के दौरान, एक जोकर ने, इतना अच्छा चुटकुला सुनाया कि वह् चुटकुला -- 100% दर्शकों को पसंद आया, और 100% लोगों ने तालियाँ बजाईं ..!! अब उसी शो में, कुछ समय बाद, उसी जोकर ने, फिर वही चुटकुला सुनाया, तो कम लोगों ने पसंद किया ..!! परन्तु फिर कुछ समय बाद, जब उस जोकर ने, उसी चुटकुले को तीसरी बार सुनाने की कोशिश की तो, 100% लोगों ने उसे, सुनने से भी, मना कर दिया ..!! 

तो मित्रों, उस जोकर ने, एक बहुत ही सुंदर बात कही :----- 

उसने कहा --- जब आप किसी एक अच्छी बात को सुनकर, बार-बार, प्रसन्न नहीं होना चाहते, तो बार बार किसी दुखद घटना को, मन ही मन बार बार याद कर, या बार बार दूसरों को सुनाकर, क्यों स्वयं, और दूसरों को, दुखी करते रहते हो ..? 

जब किसी भी देश की सरकार का क़ानून भी, किसी एक गुनाह के लिए, सिर्फ़ एक बार ही सजा देता है, और कोई एक बार सजा काट ले, तो उसे, उसी गुनाह के लिए, दुबारा सजा नहीं मिलती, और जब तुम एक बार, दुखद घटना के उदय होने पर, मातम मचा चुके हो, तो क्यों बार बार, उसी घटना को याद कर, दुखी हो, स्वयं और अपने चाहने वालों आँसूँ बहाते हो ..? 

और बार बार ही कुछ याद करना चाहते हो तो, बार बार याद करने वाली, कोई वस्तु है, तो वह् बस एक --- "राम का नाम" ..!! फिर तो -- उलटा नाम जपत जग जाना, वाल्मीकि भये ब्रम्ह समाना ..!! अर्थात, एक डाकू भी, ब्रम्ह-ज्ञानी और संत बन सकता है ..!! 

प्रयोग तो करो, स्वयं जान जाओगे ..!! और फिर तुम्हें, आनंद खोजने के लिए, दर दर ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी, क्योंकि, महावीर हनुमान की तरह, परमानंद(राम-सीता), सदैव तुम्हारे हृदय में, विराजमान होंगे ...!! 

मित्रों, यदि हम थोड़ी सी भी, गहराई से चिंतन करेंगे तो -- हमें भी इस निम्न-लिखित, परम्-कल्याणकारी कथन से सहमत होने में बिलम्ब नहीं लगेगा :---

आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् | 
धर्मो हि तेषाम् अधिकोविशेषो धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: || 
Eating (or things needed for survival), sleep, fear from somebody and sex life (for reproduction), these habits are common between human beings and animals. 
(in this respect we cant differentiate between man and animal). 
It is "dharma" which is additional important quality of man, without which he is same as an animal ....!! 

****ॐ कृष्णम वंदे जगत् गुरुम**** 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें