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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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४२. काल चेतावनी राग गौड़ी ।
पंजाबी त्रिताल ~
काहे रे नर करहु डफाण,
अंत काल घर गोर मसाण ॥टेक॥
पहले बलवंत गये विलाइ,
ब्रह्मा आदि महेश्वर जाइ ॥१॥
आगैं होते मोटे मीर,
गये छाडि पैगम्बर पीर ॥२॥
काची देह कहा गर्वाना,
जे उपज्या सो सबै विलाना ॥३॥
दादू अमर उपावनहार,
आपहि आप रहै करतार ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव काल से चेत कराते हैं कि हे मानव ! तूँ अपने को महान समझकर क्यों अहंकार करता है ? अन्त में तो तेरा घर, कब्र या श्मशान ही होगा ।
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तेरे पहले अनेकों बलिष्ठ पुरुष हो गये है, वे सब ही मिट्टी में मिल गये । और कहाँ तक कहें ? ब्रह्मा जी, शंकर जी आदि के भी माया रचित स्थूल शरीर विलय हो गये हैं ।
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तेरे से पहले बड़े - बड़े सरदार, मीर, उमराव, पीर, पैगम्बर, ये सब ही शरीर आदि सब कुछ यहाँ ही छोड़ गये हैं ।
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इस मिट्टी के कच्चे घड़े के समान तेरा शरीर है । इसको पाकर क्या अभिमान करता है ? जो कुछ नामरूप जगत उत्पन्न हुआ है, वह समय पाकर सब ही काल के द्वारा नष्ट हो जायेगा ।
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अमर तो केवल सबकी उत्पत्ति करने वाला परमेश्वर और उसका नाम ही है और वही काल से रहित हैं ।
छन्द ~ https://youtu.be/dBvZhfYY5cQ
सोइ रह्यो कहाँ गाफिल ह्वै करि,
तो सिर ऊपर काल दहाड़ै ।
धामस धूमस लाग रह्यो सठ,
आइ अचानक तोहि पछाड़ै ।
ज्यों वन में मृग कूदत फाँदत,
चित्रक ले नख सूं उर फाड़ै ।
सुन्दर काल डरै जिनके डर,
ता प्रभु को कहु क्यों न संभारै ॥४२॥
[English rendering of Hindi(for "४२. काल चेतावनी") Translation from "Maharshi Santsevi Paramhans Ji" by @Pravesh K. Singh]
Why so much of vanity? Graveyard, after all,
will be your destination, finally! ॥ref.॥
All the mighty heroes of the yesteryears have gone. ।
Deities like Brahma, Vishnu etc. would also have to go. ॥१॥
All the renowned opulent lords of yore.।
Prophets and Gurus of the past are no more. ॥२॥
Why do you pride so much in this transitory body?
Whatever is born is sure to die. ॥३॥
The Creator of all only, O Dadu, is immortal. ।
That Supreme Architect is fully sovereign, independent in full. ॥४॥

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