रविवार, 9 नवंबर 2014

= “च. विं. त.” १/२ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्विंशति तरंग” /२)*
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*इन्दव छन्द*
*श्री दादूजी अन्तरध्यान के चारों तरफ पत्र भेजे ~*
भाखूं कथा जु चोबीस तरंगहिं, 
संत महोत्सव होत विलासा ।
पत्र दिये चहुं संत जुड़े सब, 
याद करें गुरु कों निज दासा ।
दास - गरीब गह्यो गुरु आसन, 
संत महंत रहे निजवासा ।
फेर सुसंत मिले बरसी पर, 
सो उचरे गुणमाधवदासा ॥१॥ 
इस तरंग में श्री दादूजी के निजलोक प्रयाण(रवाना) के उपलक्ष्य में आयोजित संत महोत्सव का प्रसंग वर्णित होगा । चारों दिशाओं में निमन्त्रण पत्र भेजे गये, तद्नुसार अनेक संत एकत्र हुये । गुरुदेव श्री दादूजी का स्मरण करते हुये ज्ञान चर्चायें की । गरीबदास जी को गुरु गद्दी पर आसीन किया गया । अन्य आश्रम धामों में संत महंत परस्पर मिलकर अगली बरसी पर पुन: मिलने का संकल्प लेकर अपने - अपने स्थानों पर पधारे । इन सबका वर्णन माधवदास इस तरंग में प्रस्तुत कर रहा है ॥१॥
संत सुचिंत विचार भलीविध, 
दादु दयालुहिं मेलो रच्यो है ।
पत्र दिये लिखि संत चहूं दिशि, 
काज सुधारण संत सच्यो है ।
सो उपमा बरणी नहिं जावत, 
दास - गरीब उदार अछ्यो है ।
साधु जती सति सूर सुहावत, 
मोह मिटावन कार रच्चो है ॥२॥ 
ज्ञानी संतों ने सुविचार करके श्री दादूदयाल जी के मेले का आयोजन रचा । चारों दिशाओं में निमन्त्रण पत्र लिखकर भिजवायें गये । संत महोत्सव के लिये आवश्यक सामग्रियाँ सजाई गई । संतों के ठहरने, सत्संग, भोजन आदि की व्यवस्था के लिये जो तम्बू मण्डप बनाये गये, उनकी उपमा छवि तो वर्णन से परे है । गरीबदास जी ने बहुत उदारता से सब व्यवस्थायें करवाई । संत सम्मेलन में अनेक साधु जती सती सेवक भक्त पधारे । संतों के दर्शन से मोह मिटाने का अच्छा अवसर उपस्थित हुआ ॥२॥ 
(क्रमशः)

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