शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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राग जंगली गौड़ी ~
४१. पहरा(पंजाबी भाषा) । 
कहरवा ताल(बाल्यावस्था) ~
पहले पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तूँ आया इहि संसार वे ।
मायादा रस पीवण लग्गा, 
बिसार्‍या सिरजनहार वे ।
सिरजनहार बिसारा किया पसारा, 
मात पिता कुल नार वे ।
झूठी माया आप बँधाया, 
चेतै नहीं गँवार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, 
तूँ आया इहि संसार वे ॥१॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि उपदेश करते हैं कि हे जीवरूप बणजारे ! तूँ इस संसार में बणिज करने के लिये आया है और इस उम्र रूप रात्रि के प्रथम पहर में है, परन्तु सृष्टिकर्ता ईश्‍वर को भूलकर, तूँ माया के विषय - वासना रूप रस को पान करने लगा है । परमेश्‍वर को भूलकर, तैंने माता - पिता, स्त्री - पुत्र, वंश आदि के साथ मोह ममता का बहुत फैलाव फैला लिया है, इस मिथ्या माया के चक्र में स्वयं ही फँस गया है । हे सचेत ! सावधान होकर देख, तैंने कितने अवगुण किये हैं । अपने किए हुए दोषों के कारण ही तूँ सम्पूर्ण परिवार में बँधा हुआ है । संतजन तेरे को उपदेश करते हैं कि तूँ इस मायिक संसार में आया है सचेत रहना ।
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(तरुण अवस्था) ~
दूजे पहरै रैणि दे, बणिजारिया, 
तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ।
माया मोह फिरै मतवाला, 
राम न सक्या संभाल वे ।
राम न संभाले, रत्ता नाले, 
अंध न सूझै काल वे ।
हरि नहीं ध्याया, जन्म गँवाया, 
दह दिशि फूटा ताल वे ।
दह दिशि फूटा, नीर निखूटा, 
लेखा डेवण साल वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, 
तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ॥२॥
टीका ~ हे जीवरूप बणजारे ! यह तेरी आयुरूप रात्रि का दूसरा पहर है, इसमें तूँ तरुण स्त्री के साथ अनुरक्त हो रहा है और फिर माया के मोह - ममता में मतवाला होकर विचरता है । अब तूँने राम का स्मरण विसार दिया है, और तरुणी के साथ ही स्नेह करता है । हे अंधे विवेक रहित ! तेरे को काल नहीं सूझता है और न तूँने हरि की भक्ति ही की है । इस प्रकार, इस अमूल्य नर - तन को तूँने वृथा ही गमा दिया । तेरा हृदयरूप सरोवर फूटकर श्‍वांसरूपी जल दशों इन्द्रियों के द्वारा, दशों दिशाओं में फैल गया है । इस प्रकार तेरी सम्पूर्ण शक्ति नष्ट हो चुकी है । अब तुझे परमेश्‍वर को हिसाब देने में अति कष्ट होगा । हम संतजन तुझे कह रहे हैं कि तूँ युवती के साथ अनुरक्त होकर अपना सर्वस्व खो बैठा है ।
मुर्तजाअली के खान को, मुहम्मद आना देय ।
गर्म तवे लेखा लिया, यों प्रभु सबका लेय ॥४१॥
दृष्टान्त - एक समय मुहम्मद साहब ने अपने भक्तों से ताते(गर्म) तवे पर खड़े रहकर अपनी आय - व्यय का हिसाब माँगा था । अन्य सब देखते रहे, किन्तु मुर्तजाअली ने दौड़ते हुए गर्म तवे पर पैर का अंगूठा छूते हुए “दो खुराक में, दो खैरात में” कहकर हिसाब दे दिया । उसे चार पैसे रोज मिलते थे ।
इसलिये शब्द में कहा है कि जीवन का हिसाब देने में आगे बहुत कष्ट होगा । अतः जीवन को सरल व सही ढंग से व्यतीत करना चाहिये, ताकि आगे आसानी से जीवनदाता परमेश्‍वर को हिसाब दे सको ।
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(प्रौढ अवस्था) ~
तीजे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तैं बहुत उठाया भार वे ।
जो मन भाया, सो कर आया, 
ना कुछ किया विचार वे ।
विचार न कीया नाम न लीया, 
क्यों कर लंघै पार वे ।
पार न पावे, फिर पछितावे, 
डूबण लग्गा धार वे ।
डूबण लग्गा, भेरा भग्गा, 
हाथ न आया सार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, 
तैं बहुत उठाया भार वे ॥३॥
टीका ~ हे जीवरूप बणजारे ! यह तेरी रात्रि का तीसरा पहर है । इसमें तैने ममता रूप बहुत सा भार कहिए, बोझा उठा लिया है । जो तेरे मन को अच्छे लगे, वे ही काम तूँ ने किये, भले - बुरे का कुछ भी विचार नहीं किया और न आत्मा रूप परमात्मा का स्मरण ही किया । तूँ इस संसार - समुद्र को कैसे पार कर सकेगा ? जब इस संसार - समुद्र में डूबने लगेगा, तब फिर पश्‍चात्ताप ही करना होगा । जब डूबने लगा और मनुष्य देह रूप भेरा कहिए, नौका टूट गई और तेरे हाथ में कहिए, हृदय में परमात्मा का नाम - स्मरण रूप सार भी नहीं रहा । हे जीव ! तत्ववेत्ता संत कह रहे हैं कि तूँने पाप रूपी बोझा बहुत उठा लिया है, तेरा कल्याण होना असम्भव है ।
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वृद्धावस्था जर्जरी भूत(वृद्धावस्था) ~
चौथे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तूँ पक्का हुआ पीर वे ।
जोबन गया, जरा वियापी, 
नांही सुधि शरीर वे ।
सुधि ना पाई, रैणि गँवाई, 
नैंनहुँ आया नीर वे ।
भव - जल भेरा डूबन लग्गा, 
कोई न बंधे धीरवे ।
कोई धीर न बंधे जम के फंधे, 
क्यों कर लंघे तीर वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, 
तूँ पक्का हुआ पीर वे ॥४॥
टीका ~ हे जीवरूप बणजारिया ! यह तेरी उम्ररूप रात्रि का चौथा पहर है । इसमें तूँ घर की तथा परिवार की परिस्थितियों का विचार करता - करता वृद्ध हो गया है । तेरे शरीर की जवानी खत्म हो गई है और जर्जरी अवस्था, बुढ़ापा शरीर में आ पहुँचा है । अब तुझे तेरे शरीर की सुध - बुध भी नहीं रहने लगी है । परन्तु तूँने अब तक परमेश्‍वर के नाम की सुध नहीं पाई । वृथा ही तूँने उम्ररूपी रात्रि को खो दी है । अब तो नेत्रों से दिखना भी कम हो गया और आँसू टपकने लग गये हैं । इस संसार - समुद्र में यह मनुष्य देह रूपी नौका तेरी डूबने लगी है । इस समय में कोई भी तेरे को धैर्य बंधाने वाला नहीं है । ऐसे समय में कोई भी धैर्य नहीं रख सकता, क्योंकि यमराज के दूत फाँसी लेकर सामने खड़े हो जाते हैं और गले में डाल देते हैं । ऐसी स्थिति में तूँ संसार - समुद्र से कैसे पार हो सकेगा ?

शब्द ~
सोइ सोइ सब रैन बिहानी, 
रतन जन्म की खबर न जानी ॥टेक॥
पहले पहर मरम नहि पावा, 
मात पिता सौं मोह बंधावा ।
खेलत खात हँस्या कहुं रोया, 
बालपना ऐसे ही खोया ॥
दूजे पहर भया मतवाला, 
परधन परत्रिय देख खुसाला ।
काम अंध कामनी संग जाई, 
ऐसै सित्ते यौवन गयो सिराई ॥
तीजे पहर गया तरुणापा, 
पुत्र कलत्र का भया संतापा ।
मेरै पीछै कैसी होई, 
धरि फिर है लरिका जोई ॥
चौथे पहर जरा तन व्यापी, 
हरि न भज्यो इहिं मूरख पापी । 
कहि समुझावै सुन्दर दासा, 
राम विमुख मर गये निरासा ॥४१॥
(क्रमशः)

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