शनिवार, 8 नवंबर 2014

= “त्रयो विं. त.” ४३/४४ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” ४३/४४)*
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*सोरठा*
*श्री माधोदास जी और संत भक्तों ने प्रत्यक्ष देखा* 
*श्री दादूजी का अन्तर ध्यान*
शशि रस ॠतु आकास, जेठ कृष्ण पख अष्टमी ।
गुरु निज ब्रह्म निवास, दादू दीन दयाल जी ॥४३॥ 
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*दोहा*
ग्रन्थ प्रसंग रु ब्रह्म पद, ज्योति हिं ज्योति मिलान ।
माधव वर्णित सत्य सब, समझें साधु सुजान ॥४४॥ 
वि.सं. १६६० ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी को श्री दादूजी के ब्रह्म लीन होने का प्रसंग माधवदास जी और संत भक्तों प्रत्यक्ष द्रष्टा होकर वर्णन किया है । इसे सत्य जाने ॥ इस लीला को सुजान साधु ही समझ सकते है, विषयी पामर लोग नहि समझ पावेंगे॥४३ - ४४॥ 
इति माधवदास विरचिते श्री संतगुण सागरामृत सद्गुरु निर्वाण, ब्रह्म ज्योति समाहित निरूपण ॥ इति त्रयोविंशति - तरंग संपूर्ण ॥२३
(क्रमशः)

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