शनिवार, 8 नवंबर 2014

= १७३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
कोटि बर्ष लौं राखिये, बंसा चन्दन पास । 
दादू गुण लिये रहै, कदे न लागै बास ॥ 
कोटि वर्ष लौं राखिये, पत्थर पानी मांहि । 
दादू आडा अंग है, भीतर भेदै नांहि ॥ 
कोटि वर्ष लौं राखिये, लोहा पारस संग । 
दादू रोम का अन्तरा, पलटै नांही अंग ॥ 
कोटि वर्ष लौं राखिये, जीव ब्रह्म संग दोइ । 
दादू मांहीं वासना, कदे न मेला होइ ॥ 
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साभार : Ashok Kumar Jaiswal

अगर संगत से ही तमाम खूबियाँ आ जातीं तो गन्ने के साथ साथ उगने वाले पौधों में रस क्यों नहीं होता .... ?? 
सिर्फ अच्छी संगत करने से ही कोई विद्वान अथवा साधु नहीं बन जायेगा .... संगत में सकारात्मक बातें सीखकर उन्हें अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतारने पर ही संगत की सार्थकता होगी अन्यथा सब मरघटिया वैराग्य ही साबित होगा .... गन्ने ने खुद में धरती से रस खींचकर खुद को मीठा बना लेने की क्षमता विकसित कर ली हुई है इसलिए वह मीठा बन जाता है परन्तु उसके साथ ही उगनेवाली घास-फूस एवँ अन्य झाड़ियाँ रूखी ही रह जाती हैं .... !! 

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