#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू राम रसाइन नित चवै, हरि है हीरा साथ ।
सो धन मेरे साइयां, अलख खजाना हाथ ॥
हिरदै राम रहै जा जन के, ताको ऊरा कौण कहै ।
अठ सिधि, नौ निधि ताके आगे, सनमुख सदा रहै ॥
वंदित तीनों लोक बापुरा, कैसे दर्श लहै ।
नाम निसान सकल जग ऊपर, दादू देखत है ॥
दादू सब जग नीधना, धनवंता नहीं कोइ ।
सो धनवंता जाणिये, जाके राम पदार्थ होइ ॥
संगहि लागा सब फिरै, राम नाम के साथ ।
चिंतामणि हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥
दादू आनन्द आत्मा, अविनाशी के साथ ।
प्राणनाथ हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥
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Ashok Kumar Jaiswal ~ सुन्दर हिन्दी, प्यारी हिंदी
महात्मा जी आपके पास क्या है, वही मुझे चाहिए..............
बहुत पुरानी कहानी है. एक गाँव में एक गरीब आदमी रहता था. बड़ी मुश्किल से उसका गुजारा होता था. किसी ने उसे सलाह दी कि गाँव बाहर जो महात्मा जी रहते हैं, उनके पास जाओ शायद वे कुछ मदद कर सकें. गरीब व्यक्ति महात्मा जी के पास गया. जो कि गाँव बाहर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे.
गरीब आदमी ने महात्माजी से अपना दुःख व्यक्त किया. महात्मा जी ने गरीब आदमी पर तरस खाकर कहा कि जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे खोदना धन मिल जाएगा. गरीब आदमी जंगल गया और उसे महात्माजी द्वारा बताये गए स्थान पर खुदाई करने पर कुछ धन मिल गया. वह खुशी खुशी वापस घर आया और अपना और परिवार का गुजारा अच्छे से करने लगा. कुछ ही दिनों में धन समाप्त हो गया.
वह फिर महात्माजी के पास गया और इस बार महात्माजी ने उसे चांदी की खदान के बारे में बताया. इस बार वह आदमी बहुत सी चांदी खदान से ले आया और सम्पन्नता से रहने लगा. अब आदमी की आवश्यकताएं बढ़ने लगीं.
वह तीसरी बार महात्माजी के पास गया और महात्माजी ने उसे इस बार सोने की खदान पर भेजा. कुछ समय बाद वह आदमी फिर आ गया और इस बार महात्माजी ने उसे हीरे की खदान का पता बताया. आदमी खुशी खुशी हीरे की खदान के ओर चल दिया. आधे रास्ते तक पहुंचा था तो मन में विचार आया कि महात्माजी मुझे हर बार सहायता करते हैं पर स्वयं तो एक साधारण सी कुटिया में रहते हैं. निश्चित ही महात्माजी के पास धन दौलत, सोने चांदी और हीरे से बड़ी कोई वास्तु है जिसके कारण महात्माजी को इन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती है.
वह आदमी वापस महात्माजी के पास लौट गया. महात्माजी ने उसे खाली हाथ वापस आया देख कर पूछा कि क्या हीरे की खदान नहीं मिली? इस वह व्यक्ति महात्माजी के चरणों में गिर कर बोला कि मुझे तो वह वस्तु चाहिए जो इस धन दौलत से भी बड़ी है और महात्माजी ने उसे अपना शिष्य बना लिया.
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