सोमवार, 24 नवंबर 2014

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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५८. रस त्रिताल ~
राम रस मीठा रे, 
कोई पीवै साधु सुजाण ।
सदा रस पीवै प्रेम सौं, 
सो अविनाशी प्राण ॥टेक॥
इहि रस मुनि लागे सबै, 
ब्रह्मा विष्णु महेश ।
सुर नर साधू संतजन, 
सो रस पीवै शेष ॥१॥
सिध साधक योगी जती, 
सती सबै शुकदेव ।
पीवत अंत न आवही, 
ऐसा अलख अभेव ॥२॥
इहि रस राते नामदेव, 
पीपा अरु रैदास ।
पीवत कबीरा ना थक्या, 
अजहूँ प्रेम पियास ॥३॥
यहु रस मीठा जिन पिया, 
सो रस ही मांहि समाइ ।
मीठे मीठा मिल रह्या, 
दादू अनत न जाइ ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव रामभक्ति रूप रस का परिचय दे रहे हैं कि हे भाई ! राम की भक्ति रूप अमृत रस अति मधुर है, परन्तु इसको कोई उत्तम विवेकी संत पान करते है । जो इस राम रस को सदा प्रेम के सहित पीते हैं, वे संत भक्त परमेश्‍वर को प्राणों से प्रिय हैं । 
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इस राम रस को पीने में सभी मुनिजन, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवता, नारद, साधक, संत मुक्तजन, शेष जी आदिक, सब इस राम - रस रूप अमृत को प्रीति सहित पान करते हैं । 
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सिद्ध, साधक, योगी, छह जती, सताईस सती, शुकदेव जी, इस राम - रस रूप अमृत को सभी ने पीया है, एक दिल होकर । परन्तु पीते पीते इसका किसी ने भी अंत नहीं पाया, इस अलख अभेव के नाम - स्मरण रूप अमृत रस का । 
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इसी रस को पीकर, नामदेव भक्त, राते रत्त और माते मतवाले हो गये । भक्त पीपा जी, भक्त रैदास जी, संत कबीर जी आदिक इसको पीते थकित नहीं हुए, पीने की इच्छा ही बनी रही । 
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यह राम - रस अति मधुर है । जिन्होंने इसको पीया है, वे इस राम रस में ही समा गये । इस मधुर रस को पीने वाले संतजन सुखरूप परमात्मा मैं ही समाते हैं, फिर वह अन्य शरीरों को नहीं प्राप्त होते ।

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