बुधवार, 5 नवंबर 2014

#daduji  

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥

http://youtu.be/Hjn9koibjcg

३९. परिचय वैराग्य । दादरा ~
इनमें क्या लीजे क्या दीजे, 
जन्म अमोलक छीजे ॥ टेक ॥
सोवत सुपिना होई, जागे थैं नहिं कोई ॥ १ ॥
मृगतृष्णा जल जैसा, चेत देख जग ऐसा ॥ २ ॥
बाजी भरम दिखावा, बाजीगर डहकावा ॥ ३ ॥
दादू संगी तेरा, कोई नहीं किस केरा ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव प्रत्यक्ष रूप से वैराग्य का उपदेश कर रहे हैं कि हे भाई ! इस संसार की विषय - वासनाओं में क्या लेना देना है ? यह अमूल्य मानव जन्म दिन - दिन क्षीण होता जा रहा है । तूँ क्या अज्ञान निद्रा में सोया हुआ है ? ज्ञान जागृत आते ही, यह सब स्वप्न के समान मिथ्या हो जाता है । यह मायिक कार्य संसार मृग - तृष्णा के जलवत् देखने मात्र का है । इससे कोई तृप्त नहीं होता है, क्योंकि यह असत्य है । विचार कर देख । जैसे बाजीगर भ्रम की बाजी रचकर दिखाता है अर्थात् बहकाता है, इसी प्रकार यह सब माया विशिष्ट ईश्‍वर की, रची हुई बाजी केवल देखने मात्र को ही है । तुम्हारा संगी तो केवल, एक सत्य स्वरूप परमेश्‍वर है । और इस संसार में कोई भी, किसी का साथी नहीं है ।
हरि सुमिरन की ठोर यहु, मानुष देह मांही । 
सो ठाहर सौंपी तुझे, रज्जब समझे नांहीं ॥ ३९ ॥

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