#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*बार बार यह
तन नहीं, नर नारायण देह ।*
*दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह
॥*
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साभार : Mahant Ramgopal Das Tapasvi ~
सुन्दर या नर देह है, सब दहनि कौ मूल ।
भावै यामै समझि तूं, भावै यामैं भूल ॥
क्योकि संसार की सभी योनियोंमे यह मानव देह ही सर्वप्रधान है । अब ऐसी अनमोल देह पाकर तुझ पर ही निर्भर है कि भले ही अब तूँ बुघ्दिमता से काम लेता हुआ भगवद्भक्ति में लग जा, या पूर्ववत प्रमाद करता हुआ पुन: नाना योनियों भटकता रह ।
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सुन्दर मनुषा देह धरि, भज्यौ नहीं भगवंत ।
तौ पशु पूरै उदर, शूकर स्वान अनंत ॥
यदि मानव देह पा कर भी यदि तू ने स्वयं को भगवद्भक्ति मे न लगाया और केवल उदरपोषण में स्वयं को लगाया रखा तो तूं ने कौन बड़ा काम कर लिया । अपना उदरपोषण तो किसी उपाय से शूकर, कूकर आदि अनेक पशु भी करते हैं ।

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