मंगलवार, 4 नवंबर 2014

= १६९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*बार बार यह तन नहीं, नर नारायण देह ।*
*दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह ॥* 
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साभार : Mahant Ramgopal Das Tapasvi ~

सुन्दर या नर देह है, सब दहनि कौ मूल 
भावै यामै समझि तूं, भावै यामैं भूल 
क्योकि संसार की सभी योनियोंमे यह मानव देह ही सर्वप्रधान है  अब ऐसी अनमोल देह पाकर तुझ पर ही निर्भर है कि भले ही अब तूँ बुघ्दिमता से काम लेता हुआ भगवद्भक्ति में लग जा, या पूर्ववत प्रमाद करता हुआ पुन: नाना योनियों भटकता रह 
.
सुन्दर मनुषा देह धरि, भज्यौ नहीं भगवंत 
तौ पशु पूरै उदर, शूकर स्वान अनंत 
यदि मानव देह पा कर भी यदि तू ने स्वयं को भगवद्भक्ति मे न लगाया और केवल उदरपोषण में स्वयं को लगाया रखा तो तूं ने कौन बड़ा काम कर लिया  अपना उदरपोषण तो किसी उपाय से शूकर, कूकर आदि अनेक पशु भी करते हैं 

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