रविवार, 16 नवंबर 2014

= १८७ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम । 
दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥ 
--------------------------------------------- 
NP Pathak ~ साभार..... 
Swami ramshuk das ji maharaj 
सत्संग की आवश्यकता-४ 
================= 
‘मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् । 
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ 
(गीता १०/९) 
‘मेरे में चित्त वाले, मेरे में प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन आपस में मेरे गुण, प्रभाव आदि को जानते हुए और उनका कथन करते हुए ही नित्य-निरंतर संतुष्ट रहते हैं और मेरे में प्रेम करते हैं।’
एक भक्त हो गये हैं— जयदेव कवि। ‘गीत-गोविन्द’ उनका बनाया हुआ बहुत सुन्दर संस्कृत-ग्रन्थ है। भगवान जगन्नाथ स्वयं उनके ‘गीत-गोविन्द’ को सुनते थे। भक्तों की बात भगवान् ध्यान देकर सुनते हैं। एक मालिन थी, उसको ‘गीत-गोविन्द’ का एक पद(धर) याद हो गया। 
वह बैंगन तोडने जाती और पद गाती जाती थी। तो ठाकुरजी उसके पीछे-पीछे चलते और पद सुनते। पुजारी जी मंदिर में देखते हैं कि ठाकुरजी का वस्त्र फटा हुआ है। उन्होंने पूछा—‘प्रभो ! आपके यहाँ मन्दिर में रहते हुए, यह वस्त्र कैसे फट गया ? ठाकुरजी बोले—‘भाई ! बैंगन के कांटों में उलझकर फट गया।’ पुजारीने पूछा—‘बैंगन के खेत में आप क्यों गये थे ?’ ठाकुरजी ने बता दिया; मालिन ‘गीत-गोविन्द’ का धर गा रही थी, अतः सुनने चला गया। वह चलती तो मैं पीछे-पीछे डोलता था, जिससे कपड़ा फट गया। ऐसे स्वयं भगवान् भी सुनते हैं। 
क्या भगवान् के कोई रोग है, पाप है, जिसे दूर करनेके लिये वे सुनते हैं ? फिर भी वे सुनते हैं। भगवान् की कथा सुनने के अधिकारी भक्त हैं, ऐसे ही भक्त की कथा सुनने के अधिकारी— भगवान् होते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें