रविवार, 9 नवंबर 2014

१२. चाणक को अंग ~ २१

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१२. चाणक को अंग*
*आपुन आपुन थान मुकाम,*
*सराहन कौं सब बात भली है ।* 
*यज्ञ ब्रतादिक तीरथ दान,*
*पुरान कथा जु अनेक चली है ॥* 
*कोटिक और उपाय जहां लग,*
*ते सुनि कैं नर बुद्धि छली है ।* 
*सुन्दर ज्ञान बिना न कहूं सुख,*
*भूलनि की बहु भांति गली है ॥२१॥* 
*आध्यात्मिक सुख प्राप्ति का मार्ग* : अपने अपने मत, सम्प्रदाय तथा स्थान की प्रशंसा करना सभी को अच्छा लगता है । 
यज्ञ, व्रत, तीर्थ एवं दान आदि सत्कर्मों की पुराण कथाओं में विविध प्रकार से प्रशंसा की गयी है । 
वहाँ ऐसे करोड़ों उपाय बताते हुए सामान्य जनो के लिये बुद्धिभ्रम ही पैदा किया है । 
इस प्रसंग में *श्री सुन्दरदास जी* का यही निश्चित मत है कि, प्रमाद करने के तो बहुत मार्ग मिल जायंगे; परन्तु वास्तविकता यही है कि तत्वज्ञान के बिना ऐकान्तिक सुख की प्राप्ति असम्भव है ॥२१॥ 
(क्रमशः) 

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