मंगलवार, 4 नवंबर 2014

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*पुष्कर प्रसंग*
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५०. तत्व उपदेश । राज मृगांक ताल ~
तूँ है तूँ है तूँ है तेरा, मैं नहीं मैं नहीं मैं नहीं मेरा ॥टेक॥
तूँ है तेरा जगत उपाया, मैं मैं मेरा धंधै लाया ॥२॥
तूँ है तेरा सब संसारा, मैं मैं मेरा तिन सिर भारा ॥३॥
तूँ है तेरा काल न खाइ, मैं मैं मेरा मर मर जाइ ॥४॥
तूँ है तेरा रह्या समाइ, मैं मैं मेरा गया विलाइ ॥५॥
तूँ है तेरा तुम्हीं मांहिं, मैं मैं मेरा मैं कुछ नांहिं ॥६॥
तूँ है तेरा तूँ ही होइ, मैं मैं मेरा मिल्या न कोइ ॥७॥
तूँ है तेरा लंघे पार, दादू पाया ज्ञान विचार ॥८॥
रियां में पुष्कर राज के प्रीतम नामक ब्राह्मण दादूजी के उपदेश से विशेष प्रभावित हुये थे । अतः वे दादूजी को पुष्कर लाये थे और गुप्तेश्वर महादेव के मंदिर के पास ठहराया था । एक दिन प्रीतम जिज्ञासा से दादूजी के सामने बैठा था ।
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दादूजी ने उसके मन की स्थिति जानकर उक्त ५० के पद से उसे उपदेश किया था । दादूजी २० दिन पुष्कर विराजे थे । उन्हीं दिनों में कालू ग्राम का घड़सी वैरागी पुष्कर आया था । वह दादूजी के उपदेश से अति प्रभावित हुआ था इससे दादूजी को शिष्यों सहित कालू ग्राम में ले गया था ।

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