सोमवार, 10 नवंबर 2014

१२. चाणक को अंग ~ २२

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१२. चाणक को अंग*
*कोउक चाहत पुत्र धनादिक,*
*कोउक चाहत बांझ जनायौ ।* 
*कोउक चाहत धात रसायन,*
*कोउक चाहत पारद खायौ ।* 
*कोउक चाहत जंत्रनि मंत्रनि,*
*कोउक चाहत रोग गमायौ ।* 
*सुन्दर रांम बिना सब ही भ्रम,*
*देखहु या जग यौ डहकायौ ॥२२॥* 
कोई साधक अपनी साधना द्वारा पुत्र या धन पाना चाहता है, कोई साधक वन्ध्या स्त्री के लिए पुत्र की कामना करती है । 
कोई सुवर्णादि निर्माण हेतु विशिष्ट धातुओं को रसायन चाहता है, कोई शुद्ध पारद की खोज में है कि उसे खाकर चिरञ्जीवी हो जाय । 
कोई विशिष्ट यन्त्र - मन्त्र चाहता है । कोई अपना असाद्य रोग इस साधना के बल पर नष्ट करना चाहता है । 
परन्तु *श्री सुन्दरदास जी* के मत में प्रभु भजन बिना अन्य सब कुछ भ्रमजाल है । इन बातों में यह समस्त जगत् बहका हुआ है ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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