#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*१२. चाणक को अंग*
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*कोउक चाहत पुत्र धनादिक,*
*कोउक चाहत बांझ जनायौ ।*
*कोउक चाहत धात रसायन,*
*कोउक चाहत पारद खायौ ।*
*कोउक चाहत जंत्रनि मंत्रनि,*
*कोउक चाहत रोग गमायौ ।*
*सुन्दर रांम बिना सब ही भ्रम,*
*देखहु या जग यौ डहकायौ ॥२२॥*
कोई साधक अपनी साधना द्वारा पुत्र या धन पाना चाहता है, कोई साधक वन्ध्या स्त्री के लिए पुत्र की कामना करती है ।
कोई सुवर्णादि निर्माण हेतु विशिष्ट धातुओं को रसायन चाहता है, कोई शुद्ध पारद की खोज में है कि उसे खाकर चिरञ्जीवी हो जाय ।
कोई विशिष्ट यन्त्र - मन्त्र चाहता है । कोई अपना असाद्य रोग इस साधना के बल पर नष्ट करना चाहता है ।
परन्तु *श्री सुन्दरदास जी* के मत में प्रभु भजन बिना अन्य सब कुछ भ्रमजाल है । इन बातों में यह समस्त जगत् बहका हुआ है ॥२२॥
(क्रमशः)
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