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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*राणी ग्राम प्रसंग*
१४३. उपदेश । झपताल
मना ! जप राम नाम लीजे,
साधु संगति सुमिर सुमिर, रसना रस पीजै ॥टेक॥
साधू जन सुमिरन कर, केते जप जागे ।
अगम निगम अमर किये, काल कोइ न लागे ॥१॥
नीच ऊँच चिन्त न कर, शरणागति लीये ।
भक्ति मुक्ति अपनी गति, ऐसैं जन कीये ॥२॥
केते तिर तीर लागे, बन्धन भव छूटे ।
कलि मल विष जुग जुग के, राम नाम खूटे ॥३॥
भरम करम सब निवार, जीवन जप सोई ।
दादू दुख दूर करण, दूजा नहिं कोई ॥४॥
रेवती ग्राम से राणी ग्राम के राघवदास और उनके पुत्र ऊदा दोनों जाकर दादूजी को राणी ग्राम में लाये थे । उन पिता और पुत्र दोनों को ही उक्त १४३ के पद से उपदेश किया था ।
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