बुधवार, 5 नवंबर 2014

*कालू प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*कालू प्रसंग*
एक दिन कालुग्राम में वह हाथ जोड़ कर दादूजी के सामने बैठा था तब दादूजी ने उसको -
६८. निज घर परिचय । पंचम ताल
भाई रे घर ही में घर पाया ।
सहज समाइ रह्यो ता मांही, सतगुरु खोज बताया ॥टेक॥
ता घर काज सबै फिर आया, आपै आप लखाया ।
खोल कपाट महल के दीन्हें, स्थिर सुस्थान दिखाया ॥१॥
भय औ भेद भरम सब भागा, साच सोई मन लाया ।
पिंड परे जहाँ जिव जावै, ता में सहज समाया ॥२॥
निश्चल सदा चलै नहिं कबहूँ , देख्या सब में सोई ।
ताही सौं मेरा मन लागा, और न दूजा कोई ॥३॥
आदि अनन्त सोई घर पाया, अब मन अनत न जाई ।
दादू एक रंगै रंग लागा, तामें रह्या समाई ॥४॥
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कालूग्राम से मेड़ता नरेश जयमल के पौत्र और सुलतान के पुत्र मेड़ता नरेश कृष्णसिंह दादूजी को मेड़ता ले गये । फिर एक दिन मेड़ता में ही कृष्णसिंह कु़छ जिज्ञासा से दादूजी के सामने बैठे थे तब दादूजी ने उक्त पद से उनको उपदेश किया था । फिर कृष्णसिंह दादूजी को अपना गुरु ही मानने लगे थे और दादूजी के उपदेसानुसार ही कार्य करते थे ।
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४३. उपदेश पंजाबी । त्रिताल
इत घर चोर न मूसै कोई, अंतर है जे जानै सोई ॥टेक॥
जागहु रे जन तत्त न जाइ, जागत है सो रह्या समाइ ॥१॥
जतन जतन कर राखहु सार, तस्कर उपजै कौन विचार ॥२॥
इब कर दादू जाणैं जे, तो साहिब शरणागति ले ॥३॥
मेड़ता में एक रघुनाथ नामक व्यक्ति दादूजी के दर्शन करने आये थे । उनके मन की स्थिति देखकर दादूजी ने उक्त ४३ के पद से उनको उपदेश दिया था । फिर वे दादूजी के ही शिष्य बन गये थे और मेड़ता में ही भजन करने लगे थे ।

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