गुरुवार, 13 नवंबर 2014

*तोसीना प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*तोसीना प्रसंग*
८७. वैराग्य उपदेश । निसारुक ताल
मेरा मेरा छाड़ गँवारा, सिर पर तेरे सिरजनहारा ।
अपने जीव विचारत नांहीं, क्या ले गइला वंश तुम्हारा ॥टेक॥
तव मेरा कृत करता नांही, आवत है हंकारा ।
काल चक्र सौं खरी परी रे, विसर गया घरबारा ॥१॥
जाइ तहाँ का संजम कीजै, विकट पंथ गिरिधारा ।
दादू रे तन अपना नांहीं, तो कैसे भया संसारा ॥२॥
फिर भवाद ग्राम से तोसीने के राघवदास चौहान दादूजी को अपने ग्राम तोसीने ले आये । उन तोसीने के राघवदास को ही उक्त ८७ पद से उपदेश दिया था ।

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