शनिवार, 13 दिसंबर 2014

= २५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
कुछ नाहीं का नाम क्या, जे धरिये सो झूठ । 
सुर नर मुनिजन बंधिया, लोका आवट कूट ॥ 
कुछ नाहीं का नाम धर, भरम्या सब संसार । 
साच झूठ समझै नहीं, ना कुछ किया विचार ॥
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Path of Saints(Sant Marg) 
रेगिस्तानी मैदान से एक साथ कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया। निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया मगर एक ऊंट के लिए खूंटी और रस्सी कम पड़ गई। सराय में खोजबीन की, पर व्यवस्था हो नहीं पाई। तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ। यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था, इसलिए उसने वैसा ही किया। 
झूठी खूंटी गाड़ी गई, चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया। सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं, सभी ऊंट उठकर चल पड़े, पर एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ - अरे, यह तो बंधा भी नहीं है, फिर भी उठ नहीं रहा है। 
सराय के मालिक ने समझाया - तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की, वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ। मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं, अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा। 
न केवल ऊंट बल्कि मनुष्य भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तत्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से, मिथ्या सोच से, विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दुहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है।

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