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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध) राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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७४. परिचय । कहरवा ~
जब घट परगट राम मिले ।
आत्म मंगलाचार चहुँ दिशि,
जन्म सुफल कर जीत चले ॥टेक॥
भक्ति मुक्ति अभय कर राखे,
सकल शिरोमणि आप किये ।
निर्गुण राम निरंजन आपै,
अजरावर उर लाइ लिये ॥१॥
अपने अंग संग कर राखे,
निर्भय नाम निशान बजावा ।
अविगत नाथ अमर अविनाशी,
परम पुरुष निज सो पावा ॥२॥
सोई बड़भागी सदा सुहागी,
परगट प्रीतम संग भये ।
दादू भाग बड़े वर वर कर,
सो अजरावर जीत गये ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव, परमेश्वर का साक्षात्कार रूपी परिचय बता रहे हैं कि जब अन्तःकरण रूपी घर में आत्मा रूपी राम साक्षात्कार रूप से मिलता है, तब आत्मा कहिए बुद्धि में और चारों अवस्थाओं में मंगलाचार वर्तता है । वही जिज्ञासु अपने मनुष्य - जन्म को सफल करके संसार में बाजी जीत कर जाते हैं ।
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उनको परमेश्वर अपनी पराभक्ति द्वारा जीवनमुक्त करके अपने अभय - स्वरूप में रखते हैं । वह सर्व के शिरोमणि परमेश्वर उनको अपने समान बना लिये हैं और वह निर्गुण राम निरंजन रूप आप स्वयं अजर - अमर, अपने स्वरूप में उनको लगा लिये हैं अर्थात् अपना अंग जानकर अपने साथ रखते हैं ।
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फिर वह भक्त काल - कर्म से निर्भय होकर निष्काम नाम रूप नौबत बजाकर अव्यक्त सम्पूर्ण संसार के स्वामी अजर - अमर स्वरूप अविनाशी, परम - पुरुष को प्राप्त करते हैं । सोई इस संसार में बड़भागी कहिये, बड़े भाग्य वाला पुण्य आत्मा है ।
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वह सदा ही जीव ब्रह्म की एकता रूप आनन्द का प्रकट रूप से साक्षात्कार उपभोग करते हैं । इसी प्रकार हमारा भी वर कहिए श्रेष्ठ भाग्य है, जो हम भी परब्रह्म रूप वर को प्राप्त करके संसार में मनुष्य - जन्म को जीत लिया है, अर्थात् सार्थक बना लिया है ।
(क्रमशः)
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