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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*~ आंधी प्रसंग से आगे ~*
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फिर चतुरा ने पू़छा - स्वामिन् ! ज्ञान कौनसा उत्तम माना जाता है ? दादूजी ने कहा -
राम कहै जिस ज्ञान से, अमृत रस पीवे ।
दादू दूजा छाड़ सब, लै लागी जीवे ॥१४॥
(लै अंग ७)
उक्त उत्तर सुनकर चतुरा दादूजी के शिष्य हो गये थे । ये सौ शिष्यों में हैं ।
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विष्णुदास ने पू़छा - स्वामिन्! जीव ब्रह्म कब होता है ? दादूजी ने कहा -
राम रसायन पीवतां, जीव ब्रह्म हो जाय ।
दादू आतम राम से, सदा रहै ल्यौ लाय ॥१५॥
(लै अंग ७)
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ध्यानदास ने पू़छा - भगवन् ! भक्त पूरा कब माना जाता है ? दादूजी ने कहा -
सुरति समाय सन्मुख रहे, जुग जुग जन पूरा ।
दादू प्यास प्रेम का, रस पीवे शूरा ॥
(लै अंग ७)
अपने प्रश्न का उत्तर सुनकर ध्यानदास दादू जी के शिष्य हो गये थे । ये सौ शिष्यों में हैं ।
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वाला नामक व्यक्ति ने पू़छा - भगवन् ! परमात्मा कहां रहता है ? दादूजी ने कहा -
दादू उलट अपूठा आपमें, अंतर शोध सुजाण ।
सो ढिग तेरी बावरे, तज बाहर की बाण ॥१९॥
(लै अंग ७)
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जग्गा नामक एक व्यक्ति ने पू़छा - स्वामिन् ! आश्चर्य रूप ब्रह्म का साक्षात्कार कैसे होता है ? कृपा करके आप बताइये । दादूजी ने कहा -
दादू जहां जगद्गुरु रहत हैं, तहां जे सुरति समाय ।
(लै अंग ७)
तो इन ही नैनहुं उलटकर, कौतिक देखे आय ॥१७॥
फिर जग्गा दादूजी के शिष्य हो गये थे । ये द्वितीय जग्गा सौ शिष्यों में हैं ।
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नेता नामक व्यक्ति ने पू़छा - स्वामिन् ! साधक बुद्धिमान कब माना जाता है ? दादूजी ने कहा -
सुरति अपूठी फेरिकर, आतम मांहीं आण ।
लगा रहै गुरु देव से, दादू सोय सयाण ॥२०॥
(लै अंग ७)
फिर नेता दादूजी के शिष्य हो गये थे । ये सौ शिष्यों में हैं ।
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