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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षड्विंशति तरंग” १८/१९)*
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*छप्पय*
*श्री दादू चरित्र महिमा*
चरित साहिं पठत निज प्रति, सर्वपातक - नाशनम् ।
शुद्ध हिरदय मति सुपावन, ब्रह्मज्ञान - प्रकाशनम् ॥
जगत जीव जु सुयश पावत, स्वर्गलोक निवासनम् ।
संत गुणसागर बखानत, दास माधव पावनम् ॥१८॥
जो श्रद्धालु साधु संत, भक्त सेवक इस चरित सारांश को नित्य प्रति पढ़ेगा, उसके सर्वपातक विनष्ट हो जाएंगे । उसके शुद्ध हृदय में ब्रह्म ज्ञान का प्रकाश उदय होगा । मति अत्यन्त निर्मल हो जाएगी । जगत् में वह सुयश प्राप्त करके स्वर्गलोक में निवास करेगा ॥१८॥
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*ग्रन्थ महात्मय*
*इन्दव छन्द*
जो गुण सागर पाठ पढ़े नित,
मोह अज्ञान सबै तम जावे ।
बांचि कथा जन अन्य सुनावत,
भक्ति रु प्रेम बधे जश पावे ॥
श्रद्धहिं भक्त लहे उर ज्ञान जु,
ईश्वर में विश्वास धरावे ।
होय प्रबुद्ध तिरे भव सागर,
आगम सार सुचित्त सुझावे ॥१९॥
जो जन संतगुण सागर का पाठ करेंगे, उनका मोह अज्ञान अंधेरा दूर हो जाएगा । इसकी कथा बाँच कर जो अन्य श्रद्धालुओं को सुनायेंगे । उनकी भक्ति प्रीति बढ़ेगी, यश फैलेगा । जो भक्त श्रद्धा से इस ग्रन्थ के उपदेशों को अपने हृदय में धारण करेगा, और ईश्वर पर विश्वास करेगा, उस प्रबुद्ध साधक का निस्तारण भवसागर से सहज ही हो जाएगा । उस चित्त में सम्पूर्ण वेद शास्त्रों का सार सहज ही भासित हो जाएगा ॥१९॥
(क्रमशः)
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