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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षड्विंशति तरंग” १/२)*
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*इन्दव छन्द*
*श्री दादूदयाल की बरशी महोत्सव*
सम्वत सोलह सो इक षष्ठि जु,
अष्टमि जेठ बदी बरशीजू ।
सेवक संत निमन्त्रण पावत,
आवत हैं चहुं देश दिशी जु ॥
सप्तमि रात भयो शुभकीर्तन,
दादू - रचे पद गाये निशीजू ।
अष्टमि आरति भोग प्रसाद जु,
मन्दिर स्वामिहु दर्श खुशीजू ॥१॥
विक्रम संवत १६६१ ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी को गुरुदेव श्रीदादूजी की वार्षिक पुण्यतिथि पर संत सम्मेलन का आयोजन रखा गया । निमन्त्रण पाकर चारों दिशाओं से सेवक और संत पधारने लगे । सप्तमी की रात्रि में अखण्ड कीर्तन भजन होता रहा । श्रीदादूजी द्वारा रचित पदों को श्रद्धा प्रीतिपूर्वक गाते हुए रात्रिजागरण किया गया । फिर प्रात: अष्टमी के दिन आरती उतार कर भोग प्रसाद चढ़ाया गया । मंदिर में साधु संतों के साथ स्वामी गरीबदासजी ने श्रीगुरुवाणीजी की सौंज के दर्शन करके परम हर्ष का अनुभव किया ॥१॥
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*रात्री जागरण में देव गन्धर्वो ने श्री दादूजी के भजन गाये*
*छन्द*
दीप प्रकाश उजास निशा मध,
देखत ही सबको मन मोहै ।
गावत शबद सुरगहिं गन्धर्व,
साधुहिं रूप छिपे सूर सोहै ।
स्वामिजु आप लखी उनकी गति,
दूसर भेद लख्यो नहिं को है ।
वर्ण सके नहिं ओपम शारद,
माधव कौन बखान खरो है ॥२॥
श्री गुरुवाणी के निज मन्दिर में रात्रिभर अखण्ड दीप ज्योतियों से प्रदीप्त प्रकाश सबका मन मोह रहा था । सुसज्जित श्रीगुरुवाणीजी की सौंज के समक्ष साधु - समाज सुन्दर सामयिक राग रागिनियों में भजन गा रहे थे । गन्धर्व आदि देवगण भी साधुवेश में छिपे हुए भजन गा रहे थे, इस रहस्यलीला को केवल स्वामी गरीबदासजी ही जान पाए, और कोई भी इसका भेद नहीं पहिचान पाया । करुणा भक्ति, शरणागत विनती, श्रद्धाप्रीति एवं उपदेश भावना परक भजन शब्दों की संगीतमय प्रस्तुति की शोभा का वर्णन स्वयं शारदा भी नहीं कर सकती, फिर भला मैं माधवदास इस अलौकिक शोभा का व्याख्यान कैसे कर सकता हूँ ॥२॥
(क्रमशः)
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