#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
बीठलव्यास ने पूछा - आपका यहां निर्वाह कैसे होता है ?
दादूजी बोले -
"पूर रह्या परमेश्वर मेरा, अणमाँग्या देवे बहु तेरा ||टेक||
सिरजन हार सहज में देय, काहे धाय माँग जन लेय || १ ||
विश्वंभर सब जग को पूरे, उदर काज नर काहे झूरे || २ ||
पूरक पूरा है गोपाल, सबकी चित्त करै दर हाल || ३ ||
समर्थ सोई है जगनाथ, दादू देखि रहै संग साथ || ४ ||
यह पद सुनाकर ईश्वर सम्बन्धी अन्य विचार तथा दृष्टांत भी सुनाये | फिर बीठलव्यास के समझ में आ गई | भगवान् सबका पालन करता है | पत्थर में रहने वाले शकर खोरे कीट को पत्थर के मध्य जहां पहुँचाने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता, वहां भी विश्वंभर उसको शकर देता है | फिर दादूजी ने बीठलव्यास को ईश्वर नाम महिमा सम्बन्धी स्मरण के अंग की अनेक साखियां सुनाकर नाम चिन्तन करना रूप साधन दृढ़ करा दिया | पश्चात् बीठलव्यास ने कहा - स्वामीजी ! नगर में मेरे मन्दिर में पधारिये | वहां एकांत भी है तथा आपकी सर्व प्रकार की सेवा भी हम लोगों से हो सकेगी | और साँभर की जनता को भी आपके दर्शन सत्संग का लाभ होगा | यहा सेवा भी नहीं बन सकती है | अतः आप कृपा करें |
= बीठलव्यास के मंदिर में जाना =
दादूजी ने कहा - जैसी हरि की आज्ञा होगी वैसा ही होगा | मैं तो प्रभु की आज्ञानुसार ही सब कुछ करता हूँ | फिर दादूजी के हृदयाकाश में परमेश्वर ने प्रेरणा की - "तुम बीठलव्यास के साथ जाओ और नगर के लोगों को उपदेश द्वारा सन्मार्ग में तथा निर्गुण भक्ति में लगाओ | तब हरि की आज्ञा मान कर दादूजी बीठलव्यास के मन्दिर में पधार गये | वह मंदिर भगवान् रामचन्द्रजी का था | बीठलव्यास मूर्ती पूजा करते थे और दादूजी निर्गुण भक्ति में सलंग्न रहते थे |
(क्रमशः)

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